गीत/नवगीत

गीत – मत भुलाइए

दुर्दिन पर किसी के ऐसे न मुस्कुराइए
दिन बदलते लगती न देर मत भुलाइए

ऊंँचाई पर जो है फिर नीचे आना होगा
वक्त की डगर ऐसी सभी को चलना होगा
वक्त एक साथ रहता नहीं किसी का यह न भूल जाइए….
दिन बदलते लगती ना देर मत भुलाइए…

अपने दुख में डूबा हुआ वो तो दुख पा ही रहा
तू क्यों उस पर हँस कर अपने कर्मों में दर्द लिखा रहा
कुटिल कर्म नहीं छोड़ता किसी को कर्म के फल से घबराइए ….
दिन बदलते लगती न देर मत भुलाइए ..

ये न सोचिए आपकी बात हँसी में निकल जाएगी
अनजाने में कहीं बात भी किसी दुखी को विकल बनाएगी
अपने शब्दों को छोड़ने के पहले तोल लीजिए तब तीर चलाइए …
दिन बदलते लगती न देर मत भुलाइए…

— सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश