कुण्डली/छंद

टेरता पपीहा मन

रसाल सी रसीली आम्र कानन बीच वह,
वर्षा वारि धार साथ खेलती-नहाती है।
प्रकृति सुंदरी समेट सुंदरता सकल,
समाई है उसमे वह रति को लजाती है।
प्रेम झूले में झूलती इठलाती कली वह,
मर्यादा में बंधी पर प्रेम न जताती है।
उपवन सुवासित है उसकी सुवास से,
हंसे तो मीठी स्वर लहरी बिखराती है।
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प्रेम-ताप से तपी तमाल देह पर पडी।
बारिश की बूंदे प्रेम आग धधकाती हैं।।
गुलाबी मन-गात पर काम लगाये घात।
प्रेम पीयूष से सिंचित हृदय बाती है‌।
पिय को प्रेम पाती लिख भेजती घटाओ से,
उर मिलन की चाह पर सकुचाती है।
‘मलय’ बयार बैरी टेरता पपीहा मन,
बीते है दिन पर न रैन कट पाती है।।
— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com