कविता

ध्रुव तारा

सांध्य कालीन ध्यान में
मन पहुंच गया
आकाश में तारों के बीच
फिर जाकर अटक गया
ध्रुव तारे पे
बचपन में
जब छोटा था
रात को छत पर लेटे हुए
तारों को देख
पूछता था
मां से उनके बारे में
मां बताती थी
वो जो सात तारे है
सप्त ऋषि मंडल हैं
वो जो सबसे तेज चमक रहा है
वो देखो उत्तर में
धुव्र है वो
मां कौन ध्रुव
सुन धुव्र की कहानी
धुव्र के पिता थे राजा उतान्पाद
थीं सुनीति, सुरुचि उनकी दो रानियां
धुव्र की मां सुनीति उत्तम की थीं सुरुचि
एक दिन ईर्ष्या वश
बैठे देख पिता की गोद में
खींच उतार दिया
धुव्र को यह कह कर
नहीं तू इनकी गोद में बैठने लायक
रोता धुव्र पहुंचाअपनी मां के पास
कह सुनाया सब किस्सा
मां बोली अगर तुझे है बैठना तो
बैठ परमपिता नारायण की गोद
मिले उसे नारद दिए उसे
ओम नमो भगवते वासुदेवाय
का जप करने का उपाय
बालक धुव्र बैठ गया
करने उस नारायण का जाप
प्रकट हुए नारायण
देख धुव्र की भक्ति
करी मुराद फिर उसकी पूरी
बैठाया गोदी में अपनी
दिया आशीर्वाद
मरणो उपरांत
तू चमकेगा आसमां में
बन अटल धुव्र तारा
बेटा यह वही धुव्र है
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020