कविता

अब तलक

थिरक रहे थे,
अब तलक
यह पांव धुन पे तेरी
तेरी धुन पर नाचने का
… चलन मैं छोड़ रही हूँ।

दिल छलनी हो जाता है
जब बोलते हो –
“दिन भर क्या करती हो ?”
बन कठपुतली ताने सुनने का
… क्रम मैं तोड़ रही हूँ।

पावों की पायल मेरी
सरगम लगती थी अब तलक
“अब लगने लगी हैं बेड़ियां”
इन बेड़ियों में जकड़े रहने का
… भ्रम मैं तोड़ रही हूँ।

— अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed