कविता

कोविड आया है…

ड्राइंग रूम का बड़ा सा महंगा सोफा
सेंट्रल टेबल पर सजा खूबसूरत गुलदस्ता
उस पर भरा बासी पानी
धूल के छोटे-छोटे कण लिए हुए
सूखे हुए फूल और पत्ती
लहराते शानदार पर्दे
रूम फ्रेशनर की भीनी भीनी महक
हवा के साथ बजती विंड चाइम की खनक
रंग बिरंगी रोशनी से जगमगाते हुए झूमर
पूछते हैं…….इतनी सुनसनी क्यों है,
कोई आता क्यों नहीं………?

टेलीफोन की घंटी पूछती है
फोन में ही गपशप होती है आजकल
वह सहेली तुम्हारी
जो अकसर आ जाया करती थी
बात बात पर ठहाके लगाकर हंसती थी
ड्राइंग रूम से सीधे
किचन में घुस जाया करती थी
अब आती क्यों नहीं….?

पत्र-पत्रिकाओ और अखबारों से
भरे रहने वाले ये खाली स्टैंड भी
इस सुनसानी, खालीपन की वजह
पूछने लगे हैं अब तो…..

ड्रेसिंग टेबल में सजी रंग बिरंगी चूड़ियां
इत्र की शीशियां और नेलपेंट के डिफरेंट शेड्स
कजरा, गजरा और बिंदियां भी
पूछ रहे थे यही सवाल…..

वार्डरोब में पड़ी सुंदर साड़ियां
लहरदार दुपट्टे, करीने से रखी हुईं
वो पार्टी ड्रेसेस भी
कुछ उदास उदास से दिखाई दे रहे थे,

किटी पार्टियों और बर्थडे पार्टियों से कभी गुलजार
खचाखच भरे ये रेस्टोरेंट पूछते हैं
क्यों इतनी सुनसनी है,
कोई आता क्यों नहीं…….?

तब मैंने कहा- कोविड आया है आजकल
इसलिए
ना कोई आता है और ना बुलाता है

महकना है, खुद के लिए महको
संवरना है, खुद के लिए संवरो
दिल के हर कोने को आबाद रखो
दिल का फूल मुरझाने ना पाए,
एक माधुर्य फैला दें चारों ओर
वही पहले वाला हंसी का ठहाका
ताकि छिप कर बैठ जाए अवसाद
किसी कोने में ड्राइंग रूम के……।

— अमृता पांडे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।