कवितापद्य साहित्य

धातु पुरूष

 

आज संकुचित ज्ञान के घेरे में
अवरुद्ध जीवन का विकास
पड़ा है कुत्सित सोच के फेरे में!

जीवन का अमृत तरल रूप में
धातु है, जीवन का अंकुर
कामुकता से जीवन शैली
बिगड़ा युवक जीवन
आयु है निर्भर धातु पर
क्षरण ओज तेज कांति
बलहीन अपराध दुष्कर्म…

उत्तेजना धातु की मचलती
निकलते सुस्त होती इंद्रीय
ज्वार नसों उफनता…।

शिक्षा-संवाद धातु संरक्षण
युवकों का तेजहीन नहीं ये
भारत का बलहीन होना है।

खुली चर्चा हो शिक्षा यौन
बुद्धिजीवी क्यों है मौन?
अपराधों के उत्तरदायी हम
नहीं है तो और कौन ?

दुष्कर्म लगाते प्रश्नचिन्ह
क्यों न करते संवाद ?
धातु से बना पुरूष
धातु बहाने को कामुक
शिक्षा से दूर धातु
परिणाम समाज भुगत रहा…

ज्ञानीचोर

शोधार्थी व कवि साहित्यकार मु.पो. रघुनाथगढ़, जिला सीकर,राजस्थान मो.9001321438 ईमेल- binwalrajeshkumar@gmail.com