गीत/नवगीत

गीत “नारी की तो कथा यही है”

अपने छोटे से जीवन में
कितने सपने देखे मन में

इठलाना-बलखाना सीखा
हँसना और हँसाना सीखा
सखियों के संग झूला-झूला
मैंने इस प्यारे मधुबन में
कितने सपने देखे मन में

भाँति-भाँति के सुमन खिले थे
आपस में सब हिले-मिले थे
प्यार-दुलार दिया था सबने
बचपन बीता इस गुलशन में
कितने सपने देखे मन में

एक समय ऐसा भी आया
जब मेरा यौवन गदराया
विदा किया बाबुल ने मुझको
भेज दिया अनजाने वन में
कितने सपने देखे मन में

मिला मुझे अब नया बसेरा
नयी शाम थी नया सवेरा
सारे नये-नये अनुभव थे
अनजाने से इस आँगन में
कितने सपने देखे मन में

कुछ दिन बाद चमन फिर महका
बिटिया आयी, जीवन चहका चहका
लेकिन करनी पड़ी विदाई
भेज दिया नूतन उपवन में
कितने सपने देखे मन में

नारी की तो कथा यही है
आदि काल से प्रथा रही है
पली कहीं तो, फली कहीं है
दुनिया के उन्मुक्त गगन में
कितने सपने देखे मन में
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है