सामाजिक

क्या आपको दुसरो को पीड़ा में देख आनंद प्राप्त होता है? 

दुख और सुख दोनों ही जीवन के दो अहम भाग है । इस पूरे ब्रहमांड में हर मनुष्य ने इन दोनों ही चीजों का अनुभव अवश्य किया है । ऐसा कोई जीव नहीं जो भगवान के समक्ष दुख की कामना करता हो । हर कोई यही अपेक्षा करता है कि उनके जीवन में कभी भी दुख का आगमन ना हो ,व केवल सुख और संतुष्टि प्राप्त हो । परिवर्तन संसार का नियम है । यदि कभी आपके जीवन में बहुत सारे दुखों का आगमन होता है , तो सुख भी अवश्य ही आएगा । और कब , किस समय, किसके लिए क्या उचित है इसका चयन सिर्फ भगवान ही करते हैं । जीवन में जो कुछ भी घटता है यह सब अपने कर्मों का खेल है । सब कुछ बदला जा सकता है परंतु सिर्फ अपने कर्मों से । समय तो किसी के लिए नहीं ठहरता । और हम प्रत्येक क्षण का अपने जीवन में , किस तरह से अच्छे कार्य में उपयोग करें यह सब सिर्फ हम पर निर्भर करता है ।

आपने अवश्य कहीं बार सुना होगा अक्सर मनुष्य कहता है, कि हम तो सिर्फ कठपुतलियां है । हमारी डोर तो भगवान के हाथों में हैं और वे जब चाहे, जैसे चाहें , हमें नचवा सकते हैं । परंतु मैं इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं । क्योंकि हमारी जीवन में केवल वही होता है जैसे हमारे कर्म हो । माना कि हमारी डोर भगवान के हाथ में है, परंतु वे सदैव हमें उचित मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शित करते हैं । वो तो हम अज्ञानी हैं जो उनके इशारों को समझ ही नहीं पाते । और स्वयं के लिए दुखों का बागीचा सजा देते हैं । क्योंकि मनुष्य माया से बंदा हुआ है । हम अपना सर्वस्व सुख तो दुखों की बगिया में खोजते हैं । और अंत में हमें केवल काटे ही छुबते हैं ।

यदि आपको किसी व्यक्ति को पीड़ा में देख आनंद प्राप्त होता है  तो आप से बड़ा मूर्ख इस पूरी विश्व में या इस पूरे संसार में कहीं उपस्थित है ही नहीं । प्रत्येक मनुष्य का प्रथम धर्म यही है कि संकट में एक दूजे के सहायक बने । उनकी पीड़ा को अपनाकर उस सहारा दे । और उसे अंधकार से मुक्ति दिलाए । सुख में हर कोई शामिल होने आ जाता है । परंतु दुख मैं हर कोई साथ छोड़ देता है । दुख का कोई भी साक्षी नहीं बनता । माफी चाहती हूं पर मनुष्य जाती इतनी निर्दई हो गई है कि , उसे अन्य लोगों को पढ़ा में देख आनंद प्राप्त होता है । मैं नहीं जानती यह कैसे भाव है शायद -जलन ,घृणा, इर्षा या अहंकार परंतु इन सारे भावों से जब मनुष्य भर जाता है । तभी उसे लोगों को पीड़ा में देख सुख का अनुभव प्राप्त होता है । कितने मूर्ख वो लोग जो किसीकी पीड़ा का जश्न मनाते हैं । उस वक्त वो स्वय अंधकार को अपने घर में आमंत्रित करते हैं । क्योंकि उनके कार्य ही अनुचित है, अशुभ है । आज वे दूसरों को पीड़ा में देख भले ही राजी क्यों ना हो । परंतु उनके जीवन में स्व तूफान को वहां आमंत्रित कर रहे हैं । तूफान को आने में प्रवेश करने में कतई देरी नहीं लगेगी और जिसकी तेज गति को वह स्वयं रोकना भी चाहे तो भी नामुमकिन होगा । हम जो भी सोचते हैं, जो भी कर्म करते हैं, जो कुछ भी कहते हैं इन सबका हिसाब रखा जाता है । जो वक्त आने पर हमें ब्याज सहीत उसे चुकाना पड़ता है । हर चीज का भुक्तान इसी जन्म में करना पड़ता है ।

भगवान तो दुख में ही परीक्षा लेते हैं ताकि हम कहीं डगमगाए न जाए । जीवन में उत्पन्न हुई हर परिस्थितियों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है । उसी समय हमें आभास होता है , कि कौन अपना है और कौन पराया । और एक बात को सदैव अपने मन में गाठ बांधे रखना चाहिए । कि दुख में कभी भी अपने गुरु को अथवा अपने भगवान को कोई भी गलत बोल ना बोले । उन पर अटूट विश्वास बनाए रखे । क्योंकि वह हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हैं । और हमें उसमें खरा उतरना है । और चाहे किसी के भी सुख में शामिल मत होना परंतु उनसे दुख में सहायता करने हेतु सदैव अड़े रहना । और यदि कभी किसी के लिए अच्छा नहीं कर सकते हो तो बुरा भी ना कीजिए । अपनी मुख से सदैव अच्छी वाणी गाएं । और यदि वो भी ना कह सको तो गलत भी ना कहिए । किसी की सहायता नहीं कर सकते तो अपमान भी ना कीजिए । क्योंकि न्याय सिर्फ ऊपर वाला करता है । यदि आज हम किस पर हंसते हैं तो कल दुनिया हम पर हंसेगी । सदैव शुद्ध कर्म करीए व हर किसी को प्रोत्साहित कीजिए । समाज में एक नया उदाहरण बनिए । शुद्ध विचार रखिए, जितना हो सके अपना सारा वक्त सेवा में लगाइए । अपने मन में घृणा व प्रतिशोध का भाव न रखे । सदैव ऐसे कर्म करे जो आपको और आपके जीवन के अंतिम समय में संतुष्टि प्रधान करें ।

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा