गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

देकर दगा यूं मुहब्बत में फिर गया कोई।
किये थे वादे मगर बेवफा हुआ कोई।।
गली गली में वो बदनाम हो गया आशिक।
मुझे भी नाम देकर फिर भुला गया कोई।।
जली होगी यूं मेरी ही तरह कभी शम्आ।
मुझे भी खाक में मिला चला गया कोई।।
तरस गयी ये मेरी आँखें राह को तक के।
कदम के सारे निशां यूं मिटा गया कोई।।
बोलो कहाँ उसे ढ़ूढ़ू कहाँ मिलेगा वो।
चुरा के दिल यूं मुहब्बत जता गया कोई।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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