पर्यावरण

नदी संरक्षण का उदाहरण – मेघालय की पारदर्शी नदी, उम्न्गोत

जीवनदायनी, मोक्षदायनी नदियों को पूजनीय मानने वाली भारतीय संस्कृति, जहाँ उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूर्व से लेकर पश्चिम तक अर्थात् गंगा से लेकर कावेरी तक, ब्रम्हपुत्र से लेकर सिन्धु तक नदियों का फैला है, वहाँ नदियों का प्रदूषित होना दिन-प्रतिदिन गंभीर समस्या बनती जा रही हैI सतत प्रवाहिनी पवित्र नदियाँ, जो मानव-आस्था से जुड़ी हैं, जिनको स्वच्छ करना चुनाव के मुद्दे में भी सम्मलित किया जाता हैं और उनकी स्वच्छता अभियान से सम्बंधित कई योजनाएँ भी बनाई जाती हैं साथ ही कार्यान्वयन भी होता है परन्तु सफलता क्यों नहीं मिलती? यह विचारणीय हैI लोगों में जागरूकता की अभाव मुख्य वजह हैI ऐसे में मेघालय की नदी उम्न्गोत नदी संरक्षण का एक आदर्श प्रस्तुत करती हैI

मेघालय की खासी पहाड़ियों में बहने वाली कई नदियाँ हैंI जिनमें अधिकतर बरसाती नदियाँ हैंI इनमें दो प्रमुख नदियाँ हैं – उमिएव और उम्न्गोतI मेघालय की दूसरी बड़ी नदी उम्न्गोत नदी को देश की सबसे स्वच्छ नदी का स्थान प्राप्त है, इसके जल की पारदर्शिता, इसकी स्वच्छता का प्रमाण हैI यह मेघालय की राजधानी शिलांग से 85 कि.मी. दूर भारत-बांग्लादेश सीमा के निकट पूर्वी जयंतिया पहाड़ी जिले के दावकी कस्बे के बीच बहती हैI साफ पारदर्शी जल, मनोरम प्राकृतिक दृश्य इसे पहाड़ियों में स्वर्ग की सी अनुभूति कराते हैंI

भारत की नदियों की भाँति इन नदियों से जुड़ा मिथक कई वर्षों पुराना है, जो इनके उद्भव की कथा एवं इतिहास बताता है एवं आस्था से जुड़ा हैI ये दोनों नदियाँ शिलांग के देवता ‘उ लेई श्यल्लोंग’* की जुड़वा बेटियाँ ‘का उमिएव और का उम्न्गोत’** थींI दोनों देव पुत्रियाँ होने के कारण अत्यंत सुन्दर और आकर्षक थीं, जिसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता थाI वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करती थीI वे हमेशा साथ-साथ रहती थीं और उन्हें कभी भी अकेला नहीं देखा जाता था परन्तु किसी को यह बात नहीं ज्ञात थी कि जैसा प्यार ऊपर से दिखाई देता था, वैसा वास्तव में नहीं थाI इसका कारण था – का उमिएव का विचित्र स्वभावI वह बड़ी बहन थी और अधिक बुध्दिमान, जिद्दी एवं बुरे स्वभाव वाली थीI वह अपनी बात को मनवाने के लिए चिल्लाती थीI यहाँ तक कि अपनी छोटी बहन का उम्न्गोत पर भी हुक्म चलाती थी जबकि छोटी बहन अपने विनम्र, शांत एवं प्रसन्नचित्त स्वभाव के कारण जानी जाती थीI वह बिना कुछ कहे चुपचाप अपनी बड़ी बहन की बात मान जाती थीI

शरद ऋतु की सुहावनी सुबह थी साथ ही शीतल हवा चल रही थीI सूर्य की किरणें चारो ओर फैली हरी-भरी पहाड़ियों की सुन्दरता को और भी बढ़ा रही थीI दोनों युवा राजकुमारियाँ शिलांग की चोटी पर फिसल रही थीं और ऐसे सुन्दर दृश्य का आनंद ले रही थींI बहनों की दृष्टि दूर बांग्लादेश (सम्प्रति) के मैदानों पर पड़ीI वे आश्चर्य से देखती रह गईI दूर-दूर तक जहाँ उनकी नज़रें पड़ी, उन्होंने देखा कि उन मैदानों में कई झीलें थी और वे सूर्य की रोशनी में हीरे की तरह चमक रहा था, यह दृश्य बहुत लुभावना थाI

इस सुन्दर दृश्य को देखकर दोनों बहनें बहुत खुश हुईंI का उमिएव बहुत उत्साह और साहस से भर गई थी और उसके मन में एक चुनौतीपूर्ण योजना आईI उसने अपनी छोटी बहन से कहा – बहन, क्यों न हम दोनों चमकती झीलों और आगे घाटी की ओर चले? कल्पना करो, हमारे जीवन में एक नया आकर्षक होगाI पहाड़ों पर रहना कितना उबाऊ हैI हमने बचपन से अपना समय यहीं बिताया हैI यह सुनकर का उम्न्गोत भी अपनी बड़ी बहन की तरह उत्साहित थी पर वह अपने घर की ख़ुशी और सुरक्षा को छोड़कर एक अनजान तथा दूर जाने में हिचक रही थीI उसने सिर हिलाकर मना कर दियाI

जब का उमिएव ने अपनी योजना असफल होते देखा तो वह अपनी छोटी बहन को तरह-तरह की बातें एवं व्यंग्य करके उकसाने लगीI उसने कहा – वह (छोटी बहन) खरगोश और मुर्गी की तरह कमजोर हैI ओ ! बेवकूफ लड़की, जल्दी करोI आओ, दौड़ की प्रतियोगिता करते हैंI जल्दी करें; देखते हैं कौन उन घाटियों में पहले पहुँचता है?

यह सुनकर का उम्न्गोत तैयार हो गयी और उसने कहा – प्यारी कांग (बहन), हम ज़रूर जाएँगे परन्तु हमारे बीच प्रतियोगिता नहीं होगी; हम एक साथ चलेंगे क्योंकि घाटियाँ बहुत दूर हैं और रास्ता खतरों से भरा हो सकता है अत: हमारे लिए अच्छा होगा कि हम एक साथ ही चलेंI

परन्तु का उमिएव इस बात से सहमत नहीं थी उसने अपनी बहन को बुला कर कहा – अगर तुम रास्ते के खतरों से डरती हो, तो आओ, हम जल के रूप बदल जाएँ और नदियों के रूप में अपनी यात्रा करेंI अगर तुम इसके लिए भी नहीं तैयार हो, तो तुम कायर हो और तुम्हें देवी के रूप में भी रहने का कोई अधिकार नहीं हैI तुम चूहे के रूप में बदल जाओ और जीवन भर एक बिल में रहोI

अपनी बड़ी बहन की बातों ने का उम्न्गोत को सचमुच उत्साहित कर दिया; वह कायर नहीं थीI उसने चुनौती स्वीकार कर लियाI अपने शांत एवं विनम्र स्वभाव के कारण उम्न्गोत ने यात्रा के लिए सीधा और सरल रास्ता चुना, जिसमें हल्के मोड़ थे यद्यपि वह लम्बा रास्ता थाI वह आराम से अपनी यात्रा तय करती हुई बंगलादेश के शिलोट नामक स्थान पहुँची, जहाँ दोनों बहनों ने मिलने का स्थान निश्चित किया थाI अपनी बड़ी बहन को वहाँ न पाकर उसे बहुत आश्चर्य हुआI

का उम्न्गोत का रास्ता बहुत लम्बा थाI वह रास्ते में आने वाले बाधाओं को ठेलकर नहीं अपितु उसके किनारे से होकर आगे बढ़ती गई थी, जिसके कारण उसके रास्ते में कई मोड़ आए और उसकी लम्बाई बढ़ती गईI इसलिए उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कई सप्ताह लग गएI वह निर्धारित स्थान पर अपनी बड़ी बहन को देखने की उम्मीद कर रही थीI उसे आशा थी कि उसकी बड़ी बहन उससे पहले ही पहुँच कर उसकी प्रतीक्षा कर रही होगी और अपने जीत की ख़ुशी में जोर-जोर से हँस रही होगी पर दूर-दूर तक उसका कोई नामोनिशान नहीं थाI बहन वहाँ न पाकर का उम्न्गोत बहुत चिंतित हो गईI उसने अपना रास्ता बदल लिया और अपनी बहन की खोज में शटोक (Shatok) की ओर गई और वहाँ से द्वारा (Dwara) गई पर वहाँ भी बहन को न पाकर वह जिस रास्ते से आयी थी, उसी ओर गोलाई में मुड़ गईI इसके कारण नदी के मोड़ और पूरा किनारा बहुत आकर्षक हो गयाI सूर्य की रोशनी में उसे दूर से देखने में ऐसा लगता है कि जैसे चाँदी बिखरी होI अत: लोग इसे “वाह रूपा त्यलली” (wah Rupa Tylli) अर्थात् “शुध्द चाँदी की नदी” कहते हैंI

उधर का उमिएव ने पहले से ही अपने लिए रास्ता चुन लिया थाI स्वभाव से घमंडी और दूसरों पर रोब डालने वाली होने के कारण वह अपना लक्ष्य धनुष से निकले तीर की भाँति पूरा कर लेना चाहती थीI शिलोट जल्दी पहुँचने के लिए उसने सबसे छोटे रास्ते की खोज में वह पहाड़ों, घाटियाँ और जंगलों से गुजरीI रास्ते में आने वाले बड़े-बड़े पत्थरों को तोड़ती हुई, बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ती हुई, गहरी घाटियों के ऊपर कूदती और मैदानों को खोदती हुई चल पड़ीI शक्तिशाली होने के बाद भी ये सब करने में बहुत शक्ति और समय लग गया क्योंकि उसने जो रास्ता उसने चुना था, उसमें पग-पग में बाधाएँ थींI इस प्रकार जब वह लुड़कती हुई शिलोट के निकट शैला पहुँची तो उसने देखा कि का उम्न्गोत उससे पहले ही पहुँच गई थीI

उसे वहाँ देखकर का उमिएव अवाक् रह गयीI पहली बार अपनी कमजोर बहन से हारना उसके लिए असहनीय हो गयाI यह सब भाग्य के खेल थाI उसके अहम् (ego) को ठेस पहुँचीI उसे लगा कि इस शर्मनाक हार के बाद वह संसार को अपना मुँह कैसे दिखाएगी? ‘वह कमजोर लड़की से हार गईI मैं कैसे जीवित रहूँगी?’, यह कहते हुए, अपनी किस्मत को कोसती और रोती हुई उसने अपने आप को जमीन पर जोर पटका कि वह पाँच शाखाओं में बंट गयी, जिन्हें द्वारा, उम्तंग, कुमार्जनी, पसबिरिया, और उम्तारासा के नाम से जानी जाती हैंI

जब का उम्न्गोत को अपनी बहन के बारे में पता चली तो उसे बहुत दुःख हुआI इस दुखद घटना के लिए उसने मन ही मन अपने को दोषी मानने लगीI उसने अकेले घर नहीं लौटने का निश्चय किया और सदा के लिए नदी के रूप में वहीँ अपनी बहन साथ रह गईI इस प्रकार दो देवियाँ प्राणी जगत में नदियों के रूप बहने लगींI वे नदियाँ लोगों के लिए तीर्थ बन गईं विशेषकर का उम्ग्नोत, बड़ी नदी गैर खासी जनजातियाँ यहाँ धार्मिक अनुष्ठान आदि करते हैंI यह नदी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षक का केंद्र हैI इसका जल इतना पारदर्शी है कि इसकी सतह के सुन्दर-सुन्दर पत्थर देखे जा सकते हैं और लोग अपना चेहरा स्पष्ट देख सकते हैंI नदी में तैरती नावों के अगर फोटो लें तो पारदर्शी जल के कारण लगता है कि नाव हवा में तैर रही होI अछूते प्राकृतिक दृश्य, सुरम्य वातावरण और स्वच्छ जलधारा का अद्भुत संगम मिलता हैI

ध्यातव्य है नदी की सफाई करना यहाँ के खासी समुदाय को उनके पूर्वजों से परम्परा में मिला हैI यह मिथक एक बहन का अपनी बहन के प्रति निश्चल प्रेम एवं त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करता हैI जो इनके पूर्वजों द्वारा स्थापित नैतिक मूल्यों एवं दूरदर्शिता का प्रमाण हैI उम्न्गोत दावकी, दरांग और शेन्नानग्डेंग गाँव से होकर बहती है और नदी की सफाई का उत्तरदायित्व इन गाँव वालों का हैI मौसम और पर्यटक की संख्या के अनुसार महीने में एक, दो और चार दिन सामूहिक सफाई अभियान होता है, जिसमें गाँव के हर घर से कम से कम एक व्यक्ति सफाई करने आता हैI गन्दगी फ़ैलाने पर 5000 रु. तक जुर्माना वसूला जाता हैI ध्यातव्य है कि उम्न्गोत नदी के पास के गाँव मवलिननांग में एशिया सबसे स्वच्छ गाँव हैI यहाँ की जनजातीय संस्कार एवं परम्परा सम्पूर्ण देश के लिए आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हैंI प्रकृति के प्रति यह अल्पसंख्यक जनजातीय समुदाय कितना संवेदनशील है, यह प्रशंसनीय हैI स्मरण रहे कि जब तक प्रकृति है, तब तक मानव का अस्तित्व हैI

*उ- खासी भाषा में सम्मान सूचक संबोधन पुरुषों के लिए, खासी भाषा में

**का- सम्मान सूचक संबोधन महिलाओं के लिए

सन्दर्भ – “Around the Heart Khasi Legends” by Kynpham Sing Nongkynrih

— डॉ अनीता पंडा

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA aneeta.panda@gmail.com