लघुकथा

अपना अपना सत्संग

लगभग पैंतालीस वर्षीया वह लेखिका विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अपनी कहानियों व अन्य उपलब्धियों को बड़े मनोयोग से  फेसबुक पोस्ट के जरिये अपने मित्रों से साझा करती थी । आध्यात्म में गहरी रुचि व एकाध देवी देवताओं से साक्षात्कार का दावा भी वह स्वयं अपनी पोस्ट व प्रतिक्रियाओं के द्वारा करती रहती ।
  बहुत दिन बाद आज फिर उसने अपनी टाइमलाइन पर अध्यात्म पर अपने विचार रखते हुए एक बेहतरीन आलेख पोस्ट किया।
 इस बीच अपनी टाइम लाइन पर पूर्व में पोस्ट की गई एक आध्यात्मिक आलेख पर आई  अपने एक वरिष्ठ मित्र की प्रतिक्रिया का वह अवलोकन करने लगी। राकेश की लिखी हर प्रतिक्रिया उसे अंदर तक गुदगुदाती व उसका रोम रोम खिल उठता था । उसने उस प्रतिक्रिया को कई बार पढ़ा ।
लिखा था, ‘आदरणीया पूनम जी ! अद्भुत जीवनदर्शन से आपने अवगत कराया है । आध्यात्म के बारे में आपके विचार पढ़कर मुझे गर्व हो रहा है कि मैं आप जैसी सहृदय व आध्यात्मिक विचारों से ओतप्रोत विदुषी महिला के सान्निध्य में हूँ!’

ठीक इसी के नीचे अपनी जवाबी प्रतिक्रिया पढ़कर उसके अधरों की मुस्कान और गहरी हो गई । उसने स्वयं लिखा था, ‘ आपका सामीप्य मेरा सौभाग्य है परम् श्रद्धेय ! अपना आशीर्वाद सदैव मुझपर बनाए रखियेगा !’

तभी उसके स्क्रीन पर व्हाट्सएप पर आया हुआ मैसेज फ़्लैश होने लगा । तत्परता से वह व्हाट्सएप पर पहुँची । राकेश ऑनलाइन था । वह उसका मैसेज पढ़ने लगी ।
” हाय जानेमन ! कैसी हो ? “
बिना एक पल भी देर किए वह लिखने लगी ,” ठीक हूँ जानू ! अभी तुमको ही याद कर रही थी ! “
जवाब में मुस्कुराने की इमोजी के साथ ही राकेश का जवाब आ गया ,” सच में ?”
” तुम्हारी कसम जानू ! आइ रियली लव यू सो मच ! “
” आइ लव यू टू ,जानेमन …!”
और इसी तरह बड़ी देर तक आधुनिक सत्संग चलता रहा ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।