गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वह आज हम से यूं मिल रहे हैं
जैसे चराग आंखों में जल रहे हैं।

मुझे एक मुद्दत से थी मोहब्बत
वह भी मोहब्बत में ढल रहे हैं।

ये उनके हाल ए वफा से जाना
अब वो धीरे-धीरे बदल रहे हैं।

हम तुमसे फिरसे न कह सकेंगे
अश्क आंखों में फिर पिघल रहे हैं।

कहो भी कुछ के यूं करार आए
खामोशी से तीर दिलपे चल रहे है।

जगा ना चाहत फिर करीब आकर
हम दर्द सहकर अब बदल रहे हैं।

अब आ गए हो तो फिर न जाना
सुन हम तेरी चाहत में जल रहे हैं।

हम तुम्हें खामोशी से जानिब चाहते हैं
तुम रहो कहीं हम साथ चल रहे हैं।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर