गीत/नवगीतपद्य साहित्य

घर तो आखिर, घर होता है

हर प्राणी, चैन की नींद सोता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

कण-कण में, प्रेम है रमता।
दादी दुलार में बचपन पलता।
चंचलता अगड़ाई लेती जहाँ,
सीमा टूटतीं, युवा मचलता।
प्रेम के आँसू, जो रोता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

अभावों में भी जीवन खिलता।
टूटे दिलों को, प्रेम है सिलता।
मिट्टी में है प्रेम की खुशबू,
रोने में है, हास्य झलकता।
गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह होता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

बचपन की शरारतें छिपी हुई हैं।
प्रेम इबारतें, लिखी हुई हैं।
दूर-दूर रह, दिल हैं मिलते,
दिल से दिल की, जमी हुई है।
अंकुर बढ़, पौधा होता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

युवा काम हित बाहर जाते।
बाहर रह कर, घर को चलाते।
यादों का अंबार, जमा जहाँ,
आते हैं, जब छुट्टी पाते।
घर चल, पगले, क्यों रोता है?
घर तो आखिर, घर होता है।।

घर छोड़ा, मजबूरी दाम की।
मिली न हमें मजदूरी नाम की।
सपने लेकर, शहर थे आए,
मिलती थी, मजदूरी काम की।
वापस, घर जाना होता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

समय बदला, फिजाएं बदलीं।
शहरों की अब, हवाएं बदली।
लाॅकडाउन ने जीवन रोका,
वापसी की अब, राह भी बदलीं।
हर, मजदूर मजबूर होता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

बची नहीं, अब छत की छाया।
ना कुछ पीया, ना कुछ खाया।
पैदल ही, अब राह नापनी,
साथ छोड़ता, विपत्ति में साया।
मर-मर कर जीवन बोता है।
घर तो आखिर, घर होता है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)