लघुकथा

वो बस यात्रा

हम पहली बार साथ में सफ़र कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि हमने पहले साथ में सफर नहीं किया था लेकिन जब भी किया था घर का कोई न कोई बड़ा साथ होता था।इसलिए हम साथ होकर भी साथ नहीं होते थे।शादी के बाद अब तक हमने सासु माँ और ससुर जी के साथ ही यात्रा की थी।
जब भी हम बस से साथ में शहर जाते तो मैं और सासु माँ एक सीट पर और ये और ससुर जी एक सीट पर बैठते।घर में तो ज्यादा बातचीत करने का मौका ही नहीं मिला था,शादी के इन एक सालों में। बाहर जाने पर भी ये और मुश्किल हो जाता था। सुबह-सवेरे उठकर ये खेत जाते थे और वापस आने पर भी दिन घर के बाहर ही बीतता था। गॉंवों में घर में बैठने वाले मर्दों को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता।देर रात में आकर सोते और सुबह ही निकल जाते।चूँकि हम दोनों नए थे इसलिए जब भी शहर जाना होता खरीदारी वगैरह के लिए तो सासु माँ और ससुर जी साथ जाते।ऐसे तीन-चार बार शहर जाना हुआ होगा।लेकिन इस बार मेरी तबियत अचानक से खराब हो गई। ससुर जी और सासु माँ रिश्तेदारी में किसी शादी में गये हुए थे।मुझे बार-बार उल्टियां हो रहीं थीं, इन्होंने देखा तो ये घबरा गए।
शहर में इनकी एक चाची रहती थीं,उनसे फोन पर बात की तो उन्होंने कहा कि लेकर आ जाओ। मैं डॉक्टर को दिखवा दूँगी। ये बोले तैयार हो जाओ।मैं किसी तरह तैयार हुई। हम शहर जाने वाली बस में सवार हुए।मैं खिड़की के पास बैठी और ये मेरी बगल की सीट पर।हम पहली बार अपने कमरे के बाहर एक-दूसरे के इतने नज़दीक थे।मैंने सिर पर पल्ला रखा हुआ था।लेकिन जैसे ही बस चली, पल्ला सिर से उतर गया और मेरे बाल उड़-उड़कर इनके चेहरे को छूने लगे।मैंने उन्हें संभालने की कोशिश की,तभी इन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले इन्हें उड़ने दो न।
मेरे बालों को अपने हाथ से संवारते हुए ये मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगे। मुझे बहुत शर्म आ रही थी लेकिन मन में खुशियों की अजीब सी लहरें भी उठ रहीं थीं। देखते-देखते इन्होंने मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिये औरफिर मुझे अपने सीने से लगा लिया।मुझे पहली बार इनके प्यार का अहसास हुआ।बिना कुछ कहे ही इन्होंने अपने प्यार का इज़हार कर दिया था।मेरे और इनके बीच जो दूरियां थीं वो हमेशा के लिए मिट गयीं थीं। मेरे मन में इनके प्रति जो असंतुष्टि थी वो भी दूर हो गयी थी। और मुझे यह भी अहसास हो गया था कि प्यार को ताज़ातरीन बनाये रखने के लिए खुली हवा की जरूरत होती है। मेरी तबियत भी बिना दवा के ही जैसे ठीक हो गयी थी। वो मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत बस यात्रा थी।

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश