गीतिका/ग़ज़ल

*मिलजाए साथ बहार का*

*मिलजाए साथ बहार का*
~~~~~~~~~~~~~~~~~
मेरे हम सफर मेरे हमनवा है नशा बड़ा तेरे प्यार का |
कुछ तो कहो के मैं क्या करूँ तेरी आरज़ू के खुमार का |

तेरे साथ – साथ चले खुशी तेरा साथ फसले बहार है –
तू ही आशकी तू ही बंदगी तू ही नूर मेरे सिंगार का |

तेरे बिन उदास ये ज़िन्दगी हर ओर छाया धुआँ घना –
तू ही तीरगी तू ही रौशनी तू चराग मेरे दयार का |

मेरी हसरतें तेरे दम से ही मेरी जीस्त तू मेरी जान तू –
मेरे ग़म की एक दवा है तू ,तू जवाब मेरी पुकार का |

तू ज़मीन है तू ही आसमां मेरी ज़िंदगी का मुकाम है –
अब चाहें जो भी सिला मिले नहीं डर मुझे अब हार का |

जिसे ढूंढती है नज़र मेरी मेरी रूह जिसको तलाशती
कोई दे दवा मेरे चैन की कोई दे पता भी दायर का |

वो’मृदुल’उमंग भी खो गई नही सब्र ना ही करार है.
मेरी चाहतो का सिला मिले मिल जाए साथ बहार का ।

मंजूषा श्रीवास्तव’ मंजूषा ‘

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016