कहानी

कहानी – नई चेतना

उसका जन्म हुआ होगा तो शायद उसके घर वाले जरुर मातम मनाये होंगे। ईश्वर ने उसे जरूर इस धरती पर भेजा पर एक अभिशाप के रूप में। जैसे उसके पूर्व जन्मों के पापों के परिणाम स्वरूप।वह जब भी अपने बारे में सोचता सारे नकारात्मक विचार आते। उसने जब से होश सम्भाला है,तब से समाज का तिरस्कार, लोगों का धिक्कार गालियों और अपशब्दों से उसका सामना होते आया है। माता-पिता कौन है? वह नहीं जानता परन्तु सुरूज काका को पता है लेकिन उन्होंने कभी नहीं बताया। उसके माता -पिता ने ‘अक्खी’ को हिजड़ों की इस बस्ती में चुपचाप छोड़ दिया होगा।
हां सही समझे हो आप। उसका नाम अक्खी है। बड़ा विचित्र सा नाम, विचित्र सा नाम, विचित्र सी आवाज, विचित्र सा डील डौल। कुल मिलाकर वह ईश्वर की विचित्र किन्तु सत्य रचना है,अक्खी कभी स्त्री के रूप में तो कभी मर्द के रूप में नजर आता है। क्या कहें दोनों का मिला-जुला रूप अर्धनारीश्वर कहें तो कोई अपराध तो नहीं हो जायेगा न?
आज अक्खी का मन बड़ा उदास है। वह बस अपनी टूटी चारपाई में लेटा सोचे जा रहा है। कल ही की तो बात है वह अन्य हिजड़ों के साथ ट्रेन में चढ़कर गा-गाकर बजा -बजाकर यात्रियों से पैसे मांग रहा था कि अचानक भीड़ में किसी यात्री ने अपशब्द कहते हुये आंख मारी और गंदे इशारे किये। उसके इशारे पर सारे मर्द हो-हो करके हँसने लगे। उसका मन कर रहा था कि उस गंदे इशारे करने वाले व्यक्ति को लात-घूंसों से मारे पर खून का घूंट पीकर रह गया।इस तरह के न जाने कितने अपमान रोज उन्हें सहना पड़ता है।
उसका साथी हिजड़ा रानी उससे अपनी नारी आवाज में उससे कहती- “अरे अक्खी तो गोरा चिट्टा है। औरत के वेश बनाकर तू बला की खूबसूरत दिखता है।अब तुझपे कोई भी फिदा हो जाता है।इसे तू बुरा मत माना कर। हम हिजड़ों की जिंदगी में बस है कि दूसरों को खुशी दें। हम केवल सुख देने वाले वस्तु की तरह है।यूज एण्ड थ्रो।”
अक्खी ने चिढ़कर कहा-” दूसरे हमारे बेइज्जती करें, बुरी हरकत करें, तो भी कठपुतली की तरह चुपचाप खड़े रहे, कुछ न करें? बस हथेली पीट-पीटकर हाय-हाय करते  रहें। दूसरों के बच्चों को दुआ देते रहें पर सब हमें बद्दुआ समझें।आखिर कब तक अपमान सहेंगे? यही सब सुन- सुनकर मेरे कान पक चुके हैं। “यह तो हिजड़ा है हिजड़ा” कहते-कहते अक्खी की आंखों से आंसू बहने लगा।वह सुबक -सुबक कर रो पड़ा।
वाकई हमारे समाज में हिजड़े उपेक्षित है। किसी को हिजड़ा कहना गाली होता है। हिजड़ों के दुःख दर्द से हमारा समाज अनजान सा है। समाज को फुर्सत ही कहां है। रानी अक्खी की बात सुनकर दुःखी हो गई। उसने कहा-सुन अक्खी तू क्यो अपने जी को जलाता है?जो सच है उसे स्वीकार करना जरूरी है। तू क्यों नहीं मान लेता कि हमारी जिंदगी में बस यही लिखा है उसे तो झेलना ही हैं न? मैं जानती हूं अक्खी तू हिजड़ों जैसा नहीं रहना चाहता। तू भी किसी से प्यार करना चाहता हैं। किसी का प्यार पाना चाहता हैं पर यह संभव है क्या ? अक्खी ने रानी के इन प्रश्नों का कोई जवाब नहीं दिया।
दूसरे दिन उसके हाथों में ढ़ेर सारी किताबें थीं। हिजड़ों ने उसके हाथों में किताबें देखकर उसे आश्चर्य से देखा। आखिर रानी ने पूछ ही लिया-अक्खी ये कैसी किताबें हैं इसका तुम क्या करोगे?
अक्खी ने दृढ़ता भरें स्वर में कहा-“मैं भी पढ़ना चाहता हूं।अब मैं पढूंगा और ये हमारे साथ ये जो हिजड़े बच्चे हैं उन्हें भी अच्छी शिक्षा दिलवाऊंगा।अब कोई भी किसी के दरवाजे पर नाच -गाकर पैसा नहीं मांगेगा।अब हमें भीख नहीं इज्जत की रोटी चाहिए। सुन रानी-जब यह बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे और कितने खुश होंगे।अच्छी तालीम पाकर जब इन्हें भी सरकारी नौकरियों में बड़े-बड़े पद मिलेंगे तो इनका मान सम्मान बढ़ेगा।तब समाज में हमें भी इज्जत मिलेगी।” यह कहते हुए अक्खी के आंखें आत्मविश्वास और प्रसन्नता से चमकने लगी।
अब अक्खी ओपन स्कूल में जाता। जहां बड़ी उम्र के लोग और पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चे एक साथ पढ़ते पर यहां भी उसका सफर इतना आसान नहीं था।अभी अपमान ने उसका पीछा छोड़ा ही कहां था। उसे और उस जैसे हिजड़ों को यहां भी अपमानित होना पड़ता।
शिक्षक रजिस्टर में नाम लिखते समय अजीब सी भाव मुद्रा में पूछते,”अरे तुम्हारा नाम क्या लिखें? गर्ल्स या ब्वाय्स?
तब वह जोर से चिल्लाकर कहता -“थर्ड जेंडर, थर्ड जेंडर।”
सुनकर शिक्षक के होंठों पर एक विद्रुप हंसी तैर रही होती और कक्षा के सारे लोग जोर से हंसते। ऐसे में अक्खी के आंखें अपमान से जलने लगती पर वह विवश सा बैठ जाता।आज वह क्लास से निकला तो उसका मन बड़ा खिन्न था। जब तब वह स्वयं को लेकर उदास हो जाता करता था। उसे अपनी इस काया पर खुद ही तरस आता।आखिर वह इस दुनिया को कैसे समझाये कि उसकी काया भले ही हिजड़े हैं पर मन आत्मा तो सामान्य इंसानों जैसा हैं। उन्हें भी चोट लगती हैं। दुःख-सुख दया, प्रेम,करूणा का एहसास तो हर प्राणी में सामान ही होता हैं।वह इसी सोच में डूबा अनजाने सा चलता जा रहा था।
चलते चलते वह शहर के अंतिम छोर तक पहुंच गया।सांझ ढल रही थी सांझ का धुंधलका उतर कर चारों तरफ आच्छादित हो रहा था। दिसम्बर की बर्फ की सांझ अब तन में कंपकंपी उत्पन्न कर रही थी। उसने अपनी शाल को अच्छी तरह अपने शरीर पर लपेट लिया।उसे अब थकान का अनुभव हुआ।वह इधर-उधर बैठने का स्थान ढूंढने लगा कि अचानक दूर कहीं से किसी लड़की के चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी। वह चौंक पड़ा।
वह तेजी से उधर शहर के पीछे बहने वाली बड़े नाले कीओर गया तो उसने देखा कि तीन गुंडे की तरह दिखने वाले लड़के एक पतली दुबली सी लड़की से बदतमीजी कर रहे थे लड़की की कमीज लगभग फट गई थी। लड़की गिड़- गिड़ाकर रोती हुई उन लड़कों को उनकी मां-बहन का वास्ता देती हुई उसे छोड़ देने का गुहार लगा रही थी।
अक्खी ने आव देखा न ताव।वह उन लड़कों को ललकारने लगा। उसे देखकर एक लड़के ने अक्खी को एक भद्दी गाली देते हुये कहा-“अरे हिजड़े जा भाग जा। यहां तेरे जैसे का क्या काम है? हमारी तरह होता तो इस काम में तुझे भी शामिल कर लेते। तू भी मजा ले -लेता पर क्या रे तू तो हिजड़ा है हिजड़ा।”इतना सुनना था कि अक्खी के सिर पर खून सवार हो गया।वह बिजली की फुर्ती से तीनों लड़कों पर पिल पड़ा। उसने लात-घूंसों की बारिश कर उन तीनों लड़कों को अधमरा कर दिया। लड़के हिजड़े का यह भयानक रूप देखकर जान बचाने हेतु भागने में ही अपनी भलाई समझे। उधर खड़ी लड़की डर से थर -थर कांप रही थी।अक्खी ने लड़की के तन पर अपना शाल ओढ़ाते हुये कहा- “डरो मत बहन अब तो गुंडे नहीं आयेंगे। चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं।”
लड़की ने अक्खी के पैर को पकड़ कर कहा-“आज आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या हाल होता?आपका अहसान मैं जिन्दगी भर नहीं चुका पाऊंगी।”अक्खी ने अपने पैर झटकते हुए कहा-“अरे। नहीं बहन,आप मेरे पैर मत पड़ो। जानते हो मैं एक हिजड़ा हूं।”
“नहीं भैया आप हिजड़ा नहीं हो। ये हमारा समाज हिजड़ा है जो बहन बेटियों की इज्ज़त की रक्षा नहीं कर पा रहा है।ऐसे गुंडों को सबक सिखाकर सही राह पर नहीं ला पा रहा है। आपने तो मेरी अस्मत की रक्षा की है। फिर आप हिजड़ा कैसे हुये?”यह कहते हुए लड़की पुनः अक्खी के सामने झुक गई।
इस अप्रत्याशित घटना ने अक्खी में एक नया जोश भर दिया।अब तो उसने जैसे कसम खा रखी थी कि वह समाज को दिखा देगा कि हिजड़े, हिजड़े भर ही नहीं होते, उनमें भी बहुत सारी प्रतिभायें होती हैं। वह चौबीसों  घंटे पढ़ता सिर्फ पढ़ता। रानी ने तो उसे पागल समझकर उससे बातचीत करना भी छोड़ दिया था।
आज पी एस सी का रिजल्ट आया था।अक्खी इस परीक्षा में टॉपटेन में आया था। सारे अखबार के फ्रंट पेज पर यह खबर छपी थी -राज्य में अक्खी नाम के हिजड़े ने पी एस सी की परीक्षा में टॉपटेन में जगह बनाई। सारे टी वी चैनलों में समाचार दिखाया जा रहा था कि लाखों युवकों को पीछे छोड़ अक्खी नाम के हिजड़े ने बाजी मारी ।कुछ टी वी चैनल वाले हिजड़ा कौन? जैसे टापिक पर ताल ठोककर बहस कराने में लगे हुये थे। पूरे शहर में बस अक्खी के चर्चा हो रही थी।
अब अक्खी डिप्टीकलेक्टर है।वह डिप्टीकलेक्टर के सीट पर बैठ कर कह रहा था- “अब थर्ड जेंडरों को जीने का मकसद मिल गया।”अक्खी ने सचमुच में समाज को आईना दिखा दिया था।
— डॉ (श्रीमती)शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- shall.chandra17@gmail.com