कविता

हम द्रष्टा हैं: सूर्य और सुमन

सैर करते हुए
मैं जैसे ही सीधे रस्ते से  दाहिनी ओर मुड़ी
सहसा प्रकृति का परिदृश्य परिवर्तित हो गया
दाहिनी ओर से लालिमा लिए श्वेत सुमन ने आकर्षित किया
बांईं ओर से प्रातः की लालिमा लिए
सूर्य की स्वर्णिम रश्मियों ने निमंत्रित किया
मानो कह रही हों
तनिक रुको
हमसे बात करो मुलाकात करो
रोज़ चली जाती हो हमसे बिना बोले
कुछ हमारी सुनो, कुछ अपनी कहो.

मुझे तो मानो बिन मांगी मुराद मिल गई
मैं अपने बढ़ते हुए कदमों को तनिक थाम रुक गई
पहले सुमन ने अपने मन की बात कह सुनाई
हमने तो सुगंध फैलाने को ही है ज़िंदगी पाई
सुंदरता से पालनहार ने हमको संवारा है
कोमलता का उपहार दिया और निखारा है
हमने भी मन से उनका आभार माना है
सबको प्यार दिया और अपना जाना है
हम द्रष्टा हैं, अहंकार से रहित सदा प्रसन्न रहते हैं
डाली पर हों या झर जाएं, निर्विकार रहते हैं
कोई तोड़े-मरोड़े हमको कोई गम नहीं
हमारा कुछ भी प्रयोग करे, कभी रोते हम नहीं
आंधी-पानी-तूफां-गर्मी-पाला साहस से सहते हैं
सदैव मुस्कुराते-गुनगुनाते-खुश रहते हैं.

अब मैंने सूर्य-रश्मियों की ओर रुख किया
सूर्य-रश्मियों ने भी मुस्कुराकर सुप्रभात का संकेत दिया
हम भी सुमन की तरह योगी हैं, मात्र द्रष्टा हैं
कोई हमें पूजे न पूजे, हमें न कोई चिंता है
हम तो तेज-ताप-उष्णता का उपहार बांटते हैं
बादल सामने आ जाएं, उनका भी स्वागत करते हैं
वायु अपना वेग दिखाना चाहे, उसको भी अवसर देते हैं
धुंध सामने आ जाए, उससे भी दोस्ती करते हैं
स्मॉग से भी हमको कुछ डर नहीं, वह भी मन की कर ले
हम तो फिर भी सबको समान रूप से प्रकाशित करती हैं
अपने नियत पथ पर अनवरत चलते रहना हमारा काम है
सुना है हमीं से ही बनते आठों याम हैं
‘देने का सुख’ सचमुच विचित्र होता है
किसी के लिए कुछ करके, जो संतोष मिलता है
उसका अनुपम आनंद अवर्णनीय है, ललाम है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244