कविता

धूपछाँव

जीवन में धूपछाँव
आता जाता ही रहता है,
क्योंकि जीवन में कुछ भी
स्थाई नहीं होता।
ठीक वैसे ही जैसे
धूप हो या छाँव
कभी नहीं टिकता,
अँधेरे के बाद उजाला
अपरिहार्य है,
सुख दुःख तो जीवन का आधार है,
खुशी हो गम, यही जीवन का सार है।
सब एक दूजे के पूरक हैं,
नियम के पक्के हैं,
सदा आते हैं जाते है
बार बार अपना क्रम दोहराते हैं
शायद यही उनकी नियति है
धूपछाँव की भी शायद
हर परिस्थिति में देख लीजिए
कुछ ऐसी ही गति है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921