कविता

बहारें फिर आएंगी

छूट जाए जब जमीन
या फिर उखड़ जाए जमीन से
तब भी जड़ों के साथ पेड़ भी रोता ही है
धरती के आंसूओं को किसने देखा
फूल और पत्तियों के बिखरने पर
मिलने-बिछड़ने के दौर में
तबाहियों के मंजर में
हवाओं के भी तो बहते होंगे आंसू
आंधी-तूफान खुश हो लें चाहे
बर्बादियों का जश्न मनाकर
उन्हें तो थम जाना है
पेड़ फिर खड़े होंगे
जड़ें फिर-फिर जमेंगी
आंधी-तूफान आते-जाते रहेंगे
धरती का सम्बन्ध बना रहेगा
पेड़-पौधों से उनकी जड़ों के साथ
और खिलते रहेंगे पत्ते,फल-फूल
चहचहाएंगे पंछी,गुनगुनाएंगे भंवरे
उड़ेंगी तितलियां,चहकेगी चिड़ियाएं
एक दिन थम जाएंगी युद्ध की विभीषिका
छटेंगे नफरतों के बादल
होगी प्रेम और सद्भाव की वर्षा
बहारें फिर आएंगी।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009