हास्य व्यंग्य

शालीन पाठ पढ़ाए जाने के पूर्व

आरोप-प्रत्यारोप तो दोनों पक्ष लगा सकते हैं और चाहूं तो मैं इनका या उनका पक्ष ले भी सकता हूं लेकिन समझदारी इसी में है कि चुप रहा जाए और कुछ कहा भी न जाए! और इसीलिए मैं किसी के भी पक्ष में नहीं जाऊंगा क्योंकि शाम को मुझे अपने घर भी लौटना है और श्रीमती जी के हाथों का बना लज़ीज़ खाना भी खाना है,खाने को लज़ीज़ कहना या मानना भी शांतिपूर्ण ढंग से जीने की एक कला है जिसे हर कोई नहीं समझता। परिणामस्वरूप ऐसे लोग घरों में दंगल और अमंगल को न्यौता देते हैं।
भले ही मलेशिया की महिला, परिवार और सामुदायिक विकास की उपमंत्री सिति जैलाह मोहम्मद युसूफ ने पतियों को सलाह दे दी है कि वे अपनी जिद्दी पत्नियों को अभद्र व्यवहार करने पर अनुशासित करने के लिए उन्हें शालीनता से पीटें। लेकिन यह तो दुनिया भर के पतियों ने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझा हुआ है। पति तो शालीनता से पत्नी को पीटने की कोशिश करते ही हैं किन्तु पत्नियां हैं कि शालीनता से पिटाई का स्वागत नहीं करती! क्या मंत्राणी जी इसके आगे जाकर ऐसी ही कुछ सलाह, परामर्श या मार्गदर्शन मलेशिया सहित दुनियाभर की स्त्रियों को देने का मन बना रही हैं।
लेकिन फिर सोचने में यह भी आ रहा है कि कहीं उन्होंने पत्नियों की जगह पतियों को यह सलाह गलती से तो नहीं दे दी क्योंकि राजनीतिज्ञों की ज़ुबान जरूरत से ज्यादा फिसलने लगी है। जाहिर सी बात है कि पत्नियां भी तो मानती हैं कि उनके पति जरूरत से ज्यादा जिद्दी, अभद्र और गैरजिम्मेदार हैं। वे अनुशासनहीन रहते हैं। आखिर पति को भी कैसे अनुशासन में लाया जा सकता है। कहीं वे ऐसा तो नहीं कहना चाह रही थीं कि पत्नियां पति को भद्र पुरुष बनाए रखने के लिए और उनके अभद्र व्यवहार को सुधारने और उन्हें अनुशासित बनाए रखने के लिए शालीनता से पीटें।
सवाल यह भी है कि क्या पत्नियां ही शोषित-पीड़ित हैं या फिर पति भी उतने ही शोषित पीड़ित हैं! तब क्या जो शोषित पीड़ित हैं, उन्हें सामने वाले को शालीनता से पीटने का हक दे दिया जाना चाहिए! शालीन पिटाई कैसी होती है। पीटना-पिटाना सदैव क्रूरता की हद तक रहता है या फिर उसमें शालीनता का तत्व भी विद्यमान रहता है। आखिर शालीन पिटाई और क्रूर पिटाई का भेद करने वाला अम्पायर या रैफरी कौन हो सकता है। पीटने वाला यह बताए कि वह शालीनता से पीट रहा है या फिर पिटाने वाली यह बताए कि पीटने वाले ने हद पार कर दी और पिटाई शालीनता को छोड़कर क्रूरता की ओर कदम बढ़ा चुकी है।
हो सकता है कि अनुशासन में लाने के लिए शालीनता से पीटना अनुशासन भंग कर दे और यह पीटना-पिटाना दोनों तरफ़ से ही होने लगे। दोनों ही पक्ष बचाव में कह सकते हैं कि सबकुछ शालीनता से ही चल रहा है और एक दूसरे पर आरोप यह भी लग सकता है कि सामने वाले ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी।
बहरहाल,पति-पत्नी के सम्बन्धों की दहलीज पर शालीन पाठ के पूर्व अनुशासन, जिद, व्यवहार और भद्रता को परिभाषित किए जाने की भी मांग सब ओर से उठने लगी हैं।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009