कविता

मुर्दों का शहर न होने दो

जागो , कब-तक जागोगे ,
मुर्दों का शहर न होने दो ।
जिन्दादिली  कायम  रखो,
खुद पर कहर न होने दो ।
इतना न अधिक विनम्र बनो,
कि खून ही ठंडा पर जाये ।
हे  क्षत्रप तुम इस दुनिया में,
अब और न जौहर होने दो।
समय के  साथ बदल जाओ ,
अब और न हो काशी-मथुरा।
सम्मान बहुत ही  लुट चुका ,
इसे और न फूहड़ होने दो।
तुष्टिकरण की पीड़ा  हमने ,
सालों  साल  बिताए  हैं।
मर्माहत  बहुत हुए है हम ,
अब और न  टुअर होने दो।
जागो खोलो आँखें अपनी ,
कुर्सी का तमाशा बन्द करो।
यह देश तुम्हारे जिम्मे है ,
अब त्राहि त्राहि मत होने दो।
जागो कब तक जागोगे ,
मुर्दों का शहर न होने दो।
—  शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968