भाषा-साहित्य

सही अक्षर का उपयोग

शुद्ध हिन्दी लिखने के लिए यह भी आवश्यक है कि हम शब्दों में सही अक्षरों का उपयोग करें। गलत अक्षर का उपयोग करने पर बात भले ही समझ में आ जाये, लेकिन शब्द अशुद्ध हो जाता है। हम बता चुके हैं कि हिन्दी में किसी शब्द की कोई वर्तनी नहीं होती, उसे उसके उच्चारण के अनुसार ही लिखा जाता है। इसलिए यदि हम शब्द के उच्चारण पर ध्यान दें, तो गलत अक्षर आने की सम्भावना कम रहेगी, बशर्ते आप शब्द का उच्चारण सही करें। हिन्दी में जो बोला जाता है, ठीक वही लिखा जाता हे, इस नियम का हमें अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहिए।

अक्षरों के मामले में सबसे अधिक गलती व और ब में की जाती है। विशेष रूप से बिहारी और उत्तर प्रदेश के लोग व को लिखने और बोलने में बहुत गलती करते हैं और उसकी जगह ब लिखते या बोलते हैं, जैसे पर्बत, बक्त, अबसर आदि। इनको क्रमशः पर्वत, वक्त, अवसर आदि लिखना चाहिए। इसी तरह हमें घ और ध अक्षरों में अन्तर करना चाहिए।

दूसरी सबसे अधिक गलती ड और ड़ के मामले में की जाती है। अधिकांश लोग नहीं जानते कि ड और ड़ दो अलग-अलग अक्षर हैं और एक की जगह दूसरे का उपयोग नहीं किया जा सकता। अधिकांश लोग पेड़ को पेड लिखकर काम चला लेते हैं। कई ऐसे ज्ञानी भी हैं जो हर ड के नीचे बिन्दी लगाकर उसे ड़ बना देते हैं, भले ही उसकी आवश्यकता हो या न हो। यही गलती ढ और ढ़ के मामले में की जाती है। ऐसी गलतियों से बचना चाहिए और शब्द के सही उच्चारण के अनुसार ही सही अक्षर का उपयोग करना चाहिए।

अनेक लोग ड़ और ढ़ में भी अन्तर नहीं कर पाते। वे पढ़ना को पड़ना लिखकर अर्थ का अनर्थ कर देते हैं।

इससे भी अधिक आश्चर्य हमें तब होता है जब बड़े-बड़े साहित्यकार भी ध और द्य में अन्तर नहीं कर पाते। उनको नहीं पता कि विधा और विद्या दो अलग-अलग शब्द हैं और उनका अलग-अलग अर्थ होता है। ध केवल एक अक्षर है, जबकि द्य एक संयुक्त अक्षर है जो आधे द और पूरे य के मेल से बना है। हमें इनका अन्तर समझकर सही अक्षर का उपयोग करना चाहिए। विद्यालय को विधालय लिखना हिन्दी भाषा के ऊपर अत्याचार करना है।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com