कविता

सिंहासन

सिंह बन कर जीना सीखो
आसन खुद ब खुद मिल जायेगा
सिंहासन जब मिल जायेगा तब
बादशाह जग का कहलायेगा

सरिता बन कर बहना सीखो
मंजिल खुद ब खुद मिल जायेगा
राहों में पत्थर कितने भी हों
आगे ही बढ़ता चला जायेगा

बादल बन कर बरसना सीखों
कृषक का मित्र कहलायेगा
प्यासी धरती तृप्त हो जाये
सदा ही आनन्द तुम पायेगा

वायु बनकर बहना सीखो
देश विदेश भी घूम आयेगा
अपने साथ प्रदुषण भी ले जाना
प्रकृति निर्मल हो  जायेगा

सुगंध बन कर महकाना सीखो
दुर्गधं खुद ब खुद मिट जायेगा
जो दुर्जन राहों में आ जाये
तेरी ही गीत गुनगुनायेगा

जुगनू बन कर चमकना सीखो
अंधकार खुद ब खुद मिट जायेगा
अंधकार मिट जायेगा तो
विकास नजर ही आयेगा

— उदय  किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088