कहानी

 पिता पहचान हैं

पिता पहचान हैं

प्रिय पुत्र राहुल,
सदा खुश रहो,
आज फेसबुक पर तुम्हारी कविता ”पिता पहचान हैं” पढ़ी. तुमने लिखा है-

“पिता पहचान हैं

पिता आकाश हैं,
आकाश में धूप हैं,
धूप में कवच हैं.

पिता मित्र हैं,
मित्रों में सुदामा हैं,
पिता ही श्रीकृष्ण हैं.

पिता उपनिषद हैं,
उपनिषदों में कठोपनिषद हैं,
कठोपनिषद में नचिकेता हैं.

पिता विश्वास हैं,
प्रेम के मधुमास हैं,
प्रेम के अहसास हैं.

पिता पहचान हैं,
पिता लुकमान हैं,
पिता के बिना हलकान हैं.

पिता हर्ष हैं,
विचार-विमर्श हैं,
भटकने लगूं तो परामर्श हैं.”

सच कहूं, तो तुम्हारी इस कविता ने मेरे अंतर्मन को झकझोर दिया. तुमने पत्र में लिखा भी था, कि मैंने तुम्हें गोद में उठाकर तुम्हारी माता से और दुनिया से पहचान नहीं करवाई, फिर भी पिता के प्रति तुम्हारे इतने उत्कृष्ट विचारों से मैं भावाभिभूत हो गया. तुमने मुझे मेरा कर्त्तव्य याद दिलाकर बहुत अच्छा किया. शायद अब तुम्हें अपनाकर मैं सच्चे अर्थों में मुक्त हो पाऊंगा.

फेसबुक पर तुम्हारे Facebook friends की बातों से ही मुझे समझ में आया, कि तुम्हारी माता ने तुम्हें जो अच्छे संस्कार दिए, वे इन अच्छे Facebook friends की संगति के कारण और अधिक सुसंस्कृत हो रहे हैं. तुम्हारे एक Facebook friends ने लिखा था-

“उदासियों की वजह तो बहुत है ज़िंदगी में,
पर बेवजह खुश रहने का मज़ा ही कुछ और है,
इसलिए सदा खुश रहो.”

इससे मुझे तुम्हारे सदा खुश रहने का राज समझ में आ गया. एक संतान के लिए पिता के प्यार का महत्त्व भी मुझे Facebook से ही समझ में आया. एक दादी-पोते का वार्तालाप हो रहा था-

“Dadi- Good morning, Raje.
Raje- Good morning (happily), dadi.
Dadi- You are looking too happy today, am I right?
Raje- Yes dadi.
Dadi- May I know the reason?
Raje- Today my papa is with me.”

शायद उसके पापा बहुत दिनों बाद टूर से आए होंगे. इससे मुझे अहसास हुआ, कि तुम्हें तो कभी ऐसी खुशी नसीब हुई ही नहीं, शायद इसके लिए मैं अपने को कभी माफ़ न कर सकूं? मुझे इसका पश्चाताप हो रहा है. ख़ैर Facebook से ही पता चला, कि आज Happy Father’s Day है. तुमने तो मुझे Happy Father’s Day से पहले ही दो पत्र लिखकर मुझे Happy Father’s Day gift दे दी, अब return gift देने की बारी मेरी है. मैंने एक florist का विज्ञापन देखा था, सो FlowerAura वाले तुम्हें flowers देने आएंगे और Flipcart वाले तुम्हें एक mobile दे जाएंगे. मिल जाए, तो सूचित करना और यह भी बताना, कि कैसे लगे?

पत्र में तुमने लिखा था, कि एक पाठक ने एक गंभीर प्रश्न पूछा था, जिसका जवाब तुमने मुझसे मांगा था-
“बुद्ध को क्या सचमुच मोक्ष की प्राप्ति हुई होगी?”
पाठक का यह प्रश्न सचमुच बहुत गंभीर और माकूल है. मैं भी समझ रहा था, कि मैं मुक्त हूं, अब लग रहा है, कि वास्तव में यह मुक्ति नहीं पलायन था.

एक और भी प्रश्न था-
“यदि मोक्ष इतना व्यक्तिगत है, तो इसमें और निजी स्वार्थ में अंतर क्या है?”
इस प्रश्न ने तो मुझे हिलाकर ही रख दिया. मुझे भी लग रहा है, कि वास्तव में व्यक्तिगत मोक्ष और निजी स्वार्थ में कोई अंतर नहीं है. शायद यह मेरा निजी स्वार्थ ही था. मुझे यह भी महसूस हो रहा है, कि आज की पीढ़ी कितनी समझदार है! आज का ज़माना है ही छोटों से सीखने का. अब हम भी आप लोगों से बहुत कुछ सीख लेंगे. अब तुम सबके साथ मिलकर आनंद से Happy Father’s Day मनाओ, मैं भी तुम्हें खुश होता देखकर खुश हूंगा.

तुम्हारा पिता,
जो अब तुम्हारी पहचान है

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244