भाषा-साहित्य

वर्तमान और भविष्य में हिंदी का स्वरूप व स्थान

जिस देश की माटी में हम पल बढ़कर बड़े हुए हैं,उस माटी के प्रति हमारा लगाव और प्रेम होना स्वाभाविक है। देश की वन संपदा, जीव जंतु ,नदी, नाले ,झरने, पहाड़, पशु पक्षी आदि इन सबसे हमारा आत्मीय संबंध अपने आप ही स्थापित हो जाता है। सोचिए यदि देश की इन चीजों से हमारा इतना लगाव है तो देश की भाषा जिस के बिना हम मूक ही कहलाएंगे ,से हमारा क्या रिश्ता होगा ,क्या संबंध होगा। किसी भी देश की भाषा उस देश के निवासियों के अंतर्मन और मस्तिष्क के भावों को आधार प्रदान करती है। भाषा का प्रयोग कर कर कि हम अपने भावों को दूसरों तक प्रेषित कर सकते हैं और उन्हें समझा सकते हैं कि हमारे मन मस्तिष्क में इस वक्त क्या चल रहा है। बिना भाषा का प्रयोग किए हमारे व्यवहार के आधार पर ही कोई इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि आखिर हम कहना क्या चाहते हैं। संकेतों और हाव-भाव को समझना इतना आसान नहीं होता जितना बोल कर अपने आप को व्यक्त करना। हर चीज हाव भाव और अपने संकेतों के माध्यम से नहीं समझाई जा सकती ।उन बातों को दूसरों को समझाने के लिए हमें शब्दों का प्रयोग करना ही पड़ता है,भाषा का सहारा लेना ही पड़ता है।
हम सभी भारत देश के निवासी हैं और इस बात पर हमें गर्व भी है ।भारत देश में अनेक प्रकार की बोलियों और भाषाओं को बोला जाता है। विविधता में एकता का प्रतीक है हमारा भारत राष्ट्र।चूंकि क्
भारत में अनेक राज्य हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी एक विशिष्ट अलग पहचान है, अलग बोली है,अलग भाषा है किंतु इतना सब होते हुए भी हम सभी भारतवासी एक हैं और एक दूसरे की भाषा को भली प्रकार सहजता और आसानी से समझ सकते हैं।
भारत में चाहे जितनी भी भाषाएं और बोलियों को बोला जाता हो,किंतु यहां हिंदी का अपना एक विशिष्ट स्थान है। हिंदी भारत देश के भाल की बिंदी है अर्थात यह शिरोधार्य है। अपने राष्ट्र की भाषा का सम्मान करना अपने माता के सम्मान करने के बराबर ही है।जिस प्रकार हम अपने माता-पिता और पूर्वजों का आदर सत्कार करते हैं उसी प्रकार हमारे हृदयों में अपनी भाषा के प्रति भी सम्मान होना चाहिए और यह सम्मान किसी को दिखाने के लिए नहीं,अपितु महसूस करने के लिए होना चाहिए,सच्चे दिल से होना चाहिए।
निसंदेह,हिंदी बोलते समय प्रत्येक भारतवासी को गर्व एवम अतुलनीय हर्ष का अनुभव होता है ।जब विदेशों में भी लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं और हिंदी बोलते समय खुद को सम्मानित महसूस करते हैं,तो यह देख खुशी के मारे हमारा सीना चौड़ा हो जाता है।जरा सोचिए ,हिंदी भाषी ना होने के बावजूद भी विदेशों में हिंदी के प्रति क्रेज किस प्रकार बढ़ता जा रहा है, विदेश में रहने वाले लोग हिंदी बोल कर खुद को सम्मानित महसूस करते हैं और एक नई भाषा सीखकर गौरवान्वित भी। जब हिंदी भाषी ना होने के बावजूद दुनिया के अनेक देश हिंदी के प्रति अपने हृदय में यह आदर और सम्मान रख सकते हैं तो हम तो हैं ही हिंदी वासी ,हमारे लिए तो हिंदी हमारी माता के समान है और अपनी माता के सम्मान को बरकरार रखना हम सबका परम दायित्व बनता है। अपने इस दायित्व को निभाने में हमें किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतनी चाहिए और पूरी ईमानदारी और गर्व भाव के साथ इस जिम्मेदारी को दिल से निभाना चाहिए।
निसंदेह हमारे राष्ट्र में हिंदी का अत्यधिक सम्मान किया जाता है और हिंदी के प्रति सम्मान को प्रकट करने के लिए हम हिंदी का जम कर प्रयोग करते हैं और हिंदी प्रयोग करने में खुद को गौरवान्वित भी महसूस करते हैं ,किंतु कहा जाता है ना कि अपवाद तो हर जगह पाए जाते हैं। हमारी हिंदी भाषा भी इन अपवादों से खुद को बचा नहीं पाई है ।कहने का तात्पर्य है कि आज हमारे देश के लाखों लोग हिंदी भाषा बोलने में शर्म का अनुभव करते हैं व्यक्तिगत अपवादों को छोड़ भी दें तो भी अनेक प्रकार के सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही प्रकार के शिक्षण संस्थानों और कार्यालयों में हिंदी प्रयोग को क्लिष्ट समझा जाता है और इसके स्थान पर विदेशी भाषाओं के प्रयोग को सहज समझकर प्रयोग किया जाता है।यह अति दुखद है।
विदेशी भाषाओं को बोलना,सीखना और लिखना कदापि गलत नहीं,अपितु यह तो बहुत ही अच्छी बात है कि हम दूसरे देश की भाषाओं को सीखने में रुचि दिखा रहे हैं और अपने सामान्य ज्ञान में निरंतर वृद्धि भी कर रहे हैं जो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मज़बूत बनाने में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। किंतु विदेशी भाषाओं को सीखकर अपने ही देश में उनका वर्चस्व स्थापित करने की अनुमति देना यह सरासर गलत है ।अपनी भाषाओं के स्थान पर विदेशी भाषाओं को प्रयोग करना भी गलत है ।अपनी भाषाओं के साथ-साथ विदेशी भाषाओं का प्रयोग स्वीकार्य हो सकता है।किंतु, विदेशी भाषाओं से अपनी भाषा को रिप्लेस करना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
वर्तमान में अनेक कार्यालयों, संस्थानों और  कंपनियों में हिंदी का ना के बराबर प्रयोग किया जाता है। हिंदी के स्थान पर विदेशी भाषा का प्रयोग करने में ही वहां गर्व का अनुभव किया जाता है।वहां हिंदी बोलने वाले कर्मचारियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है, ऐसा करना ना केवल अनैतिकता की श्रेणी में आता है अपितु अपने राष्ट्र के सम्मान पर भी यह एक प्रहार ही है। भारत के असंख्य लोग हिंदी बोलने में शर्म का अनुभव करते हैं क्योंकि उनके अनुसार विदेशी भाषाओं के सामने हिंदी फीकी लगती है और हिंदी बोलने पर उनका अपमान होता है। इस प्रकार की सोच बेहद निंदनीय है ,शर्मनाक है ।निज भाषा के प्रति इस प्रकार की घटिया सोच या निम्न स्तर की मानसिकता ही हिंदी के पतन का मुख्य कारण बनती जा रही है  हिंदी के उत्थान की जिम्मेदारी हम सभी पर है ।विदेशों तक में जिस भाषा को इतना प्यार और सम्मान दिया जा रहा है उस भाषा की अपने ही घर में ,अपने ही देश में इस प्रकार की दुखद स्थिति को देखकर मन आहत होता है। क्यों लोग यह भूल जाते हैं कि हमारी अपनी भाषा ही हमारी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है ।विदेशी भाषाओं को सीखना सिखाना उस स्थिति में स्वीकार किया जा सकता है जब हम अपनी भाषाओं को प्रमुखता देकर अपनाएं और जिस प्रकार विदेशी लोग अपनी भाषा के प्रति गौरव महसूस करते हैं ,उसी प्रकार हम भी अपनी भाषा के गौरव को बनाए रखने की दिशा में हर संभव प्रयास करें। देश के बाहर इसके सम्मान को और भी ऊंचा उठाने के हमें अपने सार्थक प्रयत्न करने चाहिएं। हिंदी हमारा गौरव है ,हमारा सम्मान है ,हमारा अभिमान है,यह बात हमें कदापि नहीं भूलनी चाहिए।
कुछ लोगों की निम्न स्तर की मानसिकता के चलते हम हिंदी को बिसरा नहीं सकते। हिंदी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विदेशों में आजकल हिंदी भाषी लोगों को अत्यधिक सम्मान और आदर की दृष्टि से देखा जाता है ।भारत की ही तरह वहां पर भी हिंदी साहित्य को सीखने की ललक लोगों में देखी जाती है ।जिस प्रकार हमारे देश में हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, वहां पर भी इसी प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित करने का चलन चल पड़ा है। भारत की संस्कृति को विदेशी लोग अतिचार से अपना रहे हैं और सराह रहे हैं। निसंदेह हिंदी के प्रति पूरे विश्व का प्रेम हिंदी को एक ऐसे स्तर पर लेकर जाएगा जहां हिंदी ना केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में अपना परचम लहराएगी।अब वह दिन दूर नहीं जब हिंदी ना केवल भारत की ,अपितु समूचे विश्व के लिए गौरव का विषय बनेगी।
इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि वर्तमान में हिंदी की दशा शोचनीय है, किंतु हम सब मिलकर अपने सामूहिक प्रयासों से हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक क्रांति लेकर आएंगे और हिंदी को इसका वास्तविक अधिकार और स्थान दिला कर रहेंगे ।हिंदी हमारी आत्मा में बसती है। किसी ने सही ही कहा है कि – आप चाहे दुनिया की जितनी भी भाषाएं क्यों न सीख लें किंतु दुख, तकलीफ और यहां तक की सपनों की दुनिया में भी आप अपनी मातृभाषा में ही संवाद करते हैं, बात करते हैं ।कहने का तात्पर्य यह है कि हम हिंदी भाषी हिंदी के सम्मान पर अब कोई आंच नहीं आने देंगे,हम इसके गौरव को बढ़ाएंगे और कहीं भी इसका अपमान नहीं होने देंगे। हम हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे क्योंकि हिंदी है तो हम हैं ,हिंदी है तो हमारा राष्ट्र है। अपने राष्ट्र के अस्तित्व को संरक्षित करने अपनी संस्कृति को अगली पीढ़ियों तक हस्तांतरित करने हेतु हमें अपनी भाषा को स्नेह पूर्वक सिंचित करना होगा और इसके प्रयोग में गर्व महसूस करना होगा। यदि हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखना है तो हमें हिंदी को हर हाल में उसकी जगह दिलानी होगी।
 हिंदी भाषा के प्रति अपने मन के उदगार मैं निम्न पंक्तियों में अपने पाठकों के समक्ष रखना चाहती हूं–
मातृभाषा का नाम है हिंदी देश का अपने सम्मान है हिंदी
है ये सब भाषाओं से न्यारी हर हिंदुस्तानी का अभिमान है हिंदी
कश्मीर का सौंदर्य है हिंदी पंजाब का बांकपन है हिंदी
है राजस्थान की संस्कृति निराली हरियाणा का अपनापन है हिंदी
सभ्यता का हम पर एहसान है हिंदी कण कण में विद्यमान है हिंदी
भारतवर्ष को करती ये अलंकृत विदेशों में भी शोभायमान है हिंदी
ऋतुओं का आगमन है हिंदी त्योहारों का मनाना है हिंदी
नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाती जीने का जीवन नाम है हिंदी
देश का गुणगान है हिंदी हर जन का स्वाभिमान है हिंदी
बड़ी से बड़ी कठिनाई को पल भर में बनाती ये आसान है हिंदी
भारत का दूजा नाम है हिंदी सबकी आन बान और शान है हिंदी
जोड़े रखती सबको संग अपने अनेकता में एकता का नाम है हिंदी
नस नस में विराजमान है हिंदी दिलों में देदीप्यमान है हिंदी
भीड़ से हटकर बनाई है जिसने एक अलग वो पहचान है हिंदी
— पिंकी सिंघल

पिंकी सिंघल

अध्यापिका शालीमार बाग दिल्ली