कविता

बस इतना ही कहना है!

बस इतना ही कहना है,

अपने आपसे संकल्प करना हैं।।
नटखट बचपन खिलखिलाता रहें,
भोर-सा निश्चल, चेतनामयी रहें,
उन्मुक्त, उल्लसित, उमंगभरी,
मासुम मुस्कुराहट महकती रहें।।
बस इतना ही कहना है,
मानव जीवन सार्थक बनाना हैं।।
जोश, जुनून, जज्बातों से,
हुनर, हौसला, हिम्मत से,
यश, प्रतिष्ठा, गौरव पाये,
लगन, मेहनत, कौशल से।।
बस इतना ही कहना है,
विकासपथ पर अथक बढ़ना है।।
यौवन ऊर्जित, अनुशासित हो,
कर्मठ, सबल, संस्कारी हो,
नशे की लत से बनाये दूरी,
कर्तव्य कर्म का अवलंबन हो।।
बस इतना ही कहना है,
युवाशक्ति को संघटित करना हैं।।
ढलती सांझ न मुरझाये,
आसुंओं में गम न घुल जाये,
संध्याकाल शीतल, सुहानी हो,
आशीर्वाद, दुलार भरभर पाये।।
बस इतना ही कहना है,
स्नेहसूत्र से अपनों संग बंधना हैं।।
ज्ञान-कौशल गागर भरी रहे,
योग, ध्यान से तन-मन निरोग रहे,
स्वदेशी का गौरव-अभिमान हो,
अपनी संस्कृति से जुड़े रहें।।
बस इतना ही कहना है,
मातृभाषा को सम्मानित करना हैं।।
पेड़-पौधे, वन-जंगल, पर्वत,
जीव-जंतु, वन्य प्राणी जगत,
सृष्टि सतरंगी श्रृंगार करे,
धरा-गगन, धारा निर्मल, पुनीत।।
बस इतना ही कहना है,
प्रदूषण से पर्यावरण बचाना हैं।।
देश हमारा, हमारे अपने,
सच हो सबके सुनहरे सपने,
माँ भारती की साख बनी रहें,
विश्व गुरु भारत, जगजीत बने।।
बस इतना ही कहना है,
राष्ट्रप्रेम अलख जगाना हैं।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८