गीतिका/ग़ज़ल

सबकी ऐसे गुजर गयी

हिन्दू देखे, मुस्लिम देखे, इन्सां देख नहीं पाया
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, आते जाते उमर गयी

अपना अपना राग लिये सब अपने अपने घेरे में
हर इन्सां की एक कहानी, सबकी ऐसे गुजर गयी

अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे
इक कोने में माँ दुबकी थी, जब मेरी वहाँ नजर गयी

दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे
तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी

मदन मोहन सक्सेना

*मदन मोहन सक्सेना

जीबन परिचय : नाम: मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना जन्म स्थान: शाहजहांपुर .उत्तर प्रदेश। शिक्षा: बिज्ञान स्नातक . उपाधि सिविल अभियांत्रिकी . बर्तमान पद: सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार। देश की प्रमुख और बिभाग की बिभिन्न पत्रिकाओं में मेरी ग़ज़ल,गीत लेख प्रकाशित होते रहें हैं।बर्तमान में मैं केंद्र सरकार में एक सरकारी अधिकारी हूँ प्रकाशित पुस्तक: १. शब्द सम्बाद २. कबिता अनबरत १ ३. काब्य गाथा प्रकाशधीन पुस्तक: मेरी प्रचलित गज़लें मेरी ब्लॉग की सूचि निम्न्बत है: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/ http://www.hindisahitya.org/category/poet-madan-mohan-saxena/ http://madansbarc.jagranjunction.com/wp-admin/?c=1 http://www.catchmypost.com/Manage-my-own-blog.html मेरा इ मेल पता: [email protected] ,[email protected]

One thought on “सबकी ऐसे गुजर गयी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया ग़ज़ल !

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