कविता

कविता : प्रेम खूँटी से

साँसे अटकी रही
प्रेम हाफता रहा देर तलक
खो गये रास्ते सभी जो रात
में पहुँच ते थे बिस्तर तक

सुबकता रहा स्वप्न
पलको की देहलीज पर
स्वप्न धुलता रहा आँखे सुखती गयी
मौन को मौन ताकता रहा
खुली बाहों का रिक्त रिक्त ही रहा
न चाँद न तारे ही भर सके उसे

जलाशयों की मछलियाँ
ऊँघती सी मिली
पंछी आकाश में एक न था
नमनाक हवाओं की सरसराहट
भी मुक रही

न जाने किस तलाश में
प्रेम सफर करता रहा
न जाने किस का यकीन भरमाता रहा
उम्र बेमोड़ किसी राह पर
आकर टिक गयी
टिक गयी उम्र प्रेम खूँटी से ।।

रुचिर अक्षर

रुचिर अक्षर. कवि एवं लेखक. निवासी- जयपुर (राजस्थान). मो. 9001785001. अहा ! जिन्दगी मासिक पत्रिका व अन्य पत्रिकाओं में अनेक कविताएँ , गजलें, नज्में प्रकाशित हुईं. वर्तमान समय में 'दैनिक युगपक्ष' अखबार में नियमित लेखन ।

One thought on “कविता : प्रेम खूँटी से

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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