लघुकथा

क्या सेकुलरिज़्म का ठेका हिंदुओं का है ??

आज या यूं कहूँ की अभी अभी(29-06-2014) एक “थोथे” सेकुलरिज़्म जिसे pseudo सेकुलरिज़्म भी कहते हैं उसे देखने का अवसर मिला

Muslim-Hindu-Christian-kids

तो घटना कुछ ऐसी है की मेरे घर के बाहर एक छोटी से दीवार है तो कुछ लोग जो थक जाते हैं वो महिलाएं और वृद्ध लोग वहीं पर बैठ जाते हैं

एक मराठीभाषी माता जी जो की पास वाली चाळ मे रहती हैं वे आराम करने के लिए बैठ गईं उन्हीं की चाळ मे रहने वाली मुस्लिम महिला भी उन्हें मिल गईं इनकी बात चालू हुई तो महिलाओं की बात कहाँ से शुरू होती है और कहाँ पर खतम होती है वो सब तो आपको पता ही है

तो उस मुस्लिम महिला ने अपनी कट्टरता का परिचय देते हुए रमजान के महीने की बात छेड़ दी
मुस्लिम महिला के साथ वो मराठी भाषी माताएँ भी हाँ मे हाँ मिला रही थीं
मराठी भाषी माता ने कहा की हम तो कोई हिन्दू मुस्लिम मानते नहीं हैं,राम रहीम सब एक होते हैं ….और ब्ला ब्ला …. न जाने क्या क्या

मुस्लिम महिला बोली की हाँ हिन्दू मुस्लिम कुछ नहीं होता बल्कि सभी धर्म के लोगों को मस्जिद मे जाना चाहिए

चूंकि बात मेरे घर के बाहर हो रही थी तो मैंने भी सोचा की मामले मे दखल दी जाए और थोड़ा सेकुलरिज़्म कितना पक्का है इसकी भी “तस्दीक” कर ली जाए

मैं तुरंत घर से निकला और उनसे बोला माता जी आप शिया हैं या सुन्नी ??
तो बोलीं मैं मुसलमान हूँ

इसके बाद मैंने पूछा की अगर आप मुसलमान हैं तो इराक़ मे कौन सा मुसलमान किस मुसलमान को मार रहा है जरा बताएँगी ??

मैंने ऐसे ही दो तीन ऐसे सवाल दागे ही थे तो जवाब आया की मैं एक सुन्नी मुसलमान हूँ

तो मैंने बोला मैडम जी आप जो बोल रही हैं की हर धर्म वाले को मस्जिद मे जाना चाहिए तो पहले आप ये बताइये की क्या सुन्नियों की मस्जिद मे शिया जा सकते हैं ??

आप बोल रही हैं की हिन्दू मुस्लिम कुछ नहीं होता और उसके बाद आप हमें मस्जिद मे बुला रही हैं तो क्या आप हमारे यही पास वाले भोले बाबा मे मंदिर मे आएंगी ?? चलिये पहले अभी वहाँ पर शंकर भगवान की आरती करते हैं बाद मे कल सेहरी की नमाज़ मे मैं भी आऊँगा

क्या आप करेंगी ??

बोली नहीं मैं मंदिर मे नहीं आ सकती

मैं मराठी महिलाओं की ओर देखते हुए बोला देखो माताओं …. ये अपने को तो मस्जिद मे बुला रही हैं लेकिन खुद मंदिर आने को तैयार नही हैं क्या यही है धर्मनिरपेक्षता ??

और क्या हिन्दू मुस्लिम एकता का ठेका आप लोगों ने ही ले रखा है ?? अरे माताओं याद करो की आप के घरों मे ऐसे ऐसे वीर महापुरुष जन्मे हैं जिन्होने औरंगजेब से लेकर अफजल खान को उनकी नानी याद दिला दी थी और आप ये हिन्दू मुस्लिम एकता वाली बात कर रही हो ? धर्मनिरपेक्षता के अनुसार मुस्लिम एकता एक सभ्य और शांत समाज के लिए जरूरी है लेकिन अपने ही धर्म को छोड़ कर आप समाज मे समरसता का व्यवहार बनाने चली जाएंगी तो ये गलत है थोड़ा अपने धर्म के इतिहास बारे मे जान लीजिये अभ्यास कर लीजिये फिर हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करना

मैं यहाँ उन महिलाओं से संवाद कर ही रहा था की सेकुलरिज़्म फैलाने वाली शांतिप्रिय धर्म की प्रचारक कहाँ गायब हो गईं पता ही नहीं चला
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मुझे इस घटना के बाद तो समझ गया की ये कट्टरपंथी मुल्ले अपने धर्म को बढ़ाने के लिए पहले तो सेकुलरिज़्म का चोंगा ओढ़ लेते हैं और हिंदुवादियों को गाली देते हैं लेकिन जब हिन्दू मुस्लिम के समान अधिकारों की बात करो तो इसी “थोथे” सेकुलरिज़्म की लीद निकल आती है !!

खैर अपन तो सांप्रदायिक ही अच्छे

6 thoughts on “क्या सेकुलरिज़्म का ठेका हिंदुओं का है ??

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सही लिखा है . यह समानता की बात ज़रा पकिस्तान में जा कर कहिये तो तस्वीर सामने आ जायेगी . आज यह जो नंगा नाच ईराक सीरिया में हो रहा है धरम की ही तस्वीर है . दुनीआं में जो आतम घाती हमले हो रहे हैं वोह धर्म ही तो है .

    • अमित दुबे

      बिलकुल सही कहा 🙂

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सही लिखा है आपने. दूसरों को सेकुलरिटी का उपदेश देने वाले खुद बहुत सांप्रदायिक और संकीर्ण दिमागवाले होते हैं.

    • अमित दुबे

      धन्यवाद

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