हास्य व्यंग्य

महिमा डी जे की

ऐसे नाच रहे जैसे बिच्छू सबके काट रहे।
ऐसे गाय रहे जैसे, चोरी करके भाग रहे।।

सदाबहार गीतों को डी जे ने बर्बाद ही कर डाला
मीठे रागों का अभाव, खरहा धुन सुनाय रहे।

नागिन पर डांस ऐसे होते, जैसे मिर्गी के मरीज-
गया नशा बोतल का जब, वो देख कर शमार्य रहे।।

नीली, पीली रोशनी में, विजली की है जान गयी।
बाम्बे की नकल है उतरी, ठेला लेके जाय रहे।

राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

One thought on “महिमा डी जे की

  • विजय कुमार सिंघल

    हा…हा…हा… सही व्यंग्य किया है आपने.

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