लघुकथा

खाली मुटठी

आज वो बहुत उदास थी , कुछ भी नहीं सूझ रहा था उसे……। क्या अब तक उस ने जो भोगा  वो सब वो भूल जाये?….इतना आसान होता है क्या सब कुछ भूल जाना?? अपने दुःख से ज्यादा वो इस बात से दुखी थी कि उस के अपने भी उस के दुःख को समझ नहीं पा रहे। एक लड़की जब अपने माँ बाप के घर से शादी के बाद अपने पति के घर जाती है तो कई हिस्से में बंट जाती है. वो खुद अपने को भूल जाती है. हर तरह से नए माहौल में खुद को ढालने में अपना सारा जोर लगा देती है .

तिस पर भी जब उसे उसका मान सम्मान नहीं मिलता, वो प्यार नहीं मिलता तो किस से अपना दुःख कहे ? धीरे धीरे उस के हिस्से मरने लगते हैं। उसे एक ही उम्मीद होती है की जब उस के बच्चे बड़े होंगे तो वो उसका दुःख समझेंगे , उसे सांत्वना देंगे …………पर , आज, उस के ही बच्चे उसका दुःख नहीं समझ रहे, उसे अनसुना  कर के उसे सब कुछ भूल जाने को कह रहे है; और आज उसका बचा खुचा बाकी  हिस्सा भी मर गया … पर आज उस के आंसूं भी नहीं निकले… क्योंकि मुर्दे रोया नहीं करते…

5 thoughts on “खाली मुटठी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भारती नारी की यह बदकिस्मती कहें या इस पर रोएँ , कि पता नहीं हम किस मट्टी के बने हैं कि समझते ही नहीं . लडकी अपना घर छोड़ कर ऐसी जगह जाती है वहां उन के लिए सभी अजनवी होते हैं , और उस को सब को समझना होता है और उसी ढंग से विवहार करना होता है . सारी जिंदगी वोह दूसरों की बातें सुनती रहती है , बच्चों पर एक आशा होती है , जब वोह भी किनारा कर लेते हैं तो वोह जिंदा लाश नहीं होगी तो किया होगी . यहाँ औरत मरद के बराबर हक हैं , अगर औरत बचों की परवरिश करती है तो मरद को घर के सभी काम करने होते हैं जो इंडियन अपनी शान के खिलाफ समझते हैं . अब तो भारती औरत बराबर दफ्तर में काम करती है फिर यह डिस्क्रिमिनेशन कियों ?

    • namita.rakesh@gmail.com

      यह डिस्क्रिमिनेशन तो कब से चल रहा है और न जाने कब तक चलेगा। घर बाहर दोनों जगह संभालने के बाद भी स्त्री की स्तिथि दोयम दर्जे की ही है।
      आप इस स्तिथि को बखूबी समझते हैं और आपको ये कहानी और कहानी का कथन अच्छा लगा ,इस के लिए शुक्रिया।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      नमिता जी , मेरा मानना है कि कॉमेंट तब करना चाहिए जब कोई खुद भी उस पर चलता हो . हम मिआं बीवी अब बूड़े हो चुके हैं . और मेरी बीवी इतना पड़ी लिखी भी नहीं लेकिन हमारी सारी जिंदगी ऐसे बीती है जैसे हम दोस्त हों . शादी से लेकर आज तक हमारे आकाउंट जोएंट हैं . जितने वोह पैसे चाहती है बैंक से ले ले हमें एक दुसरे को बताने की जरुरत नहीं है . इंडिया में बीवी की बहन बेसहारा है , उस का कोई बच्चा नहीं है , हम उस को सपोर्ट करते हैं किओंकि उस की बहन मेरी भी बहन जैसी ही है . इन बातों का हमें फैदा यह हुआ कि हमारे बच्चे भी उसी तरह कर रहे हैं . अब तो उन के बच्चे भी यूनी में पड़ रहे हैं . इस देश में बच्चों का हमारी तरह बीहेव करना ऐसे है जैसे गंदे पानी में कमल फूल .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा. अंत में मुट्ठी खाली ही रह जाती है.

    • namita.rakesh@gmail.com

      आपको यह लघुकथा अच्छी लगी इस के लिए आपकी आभारी हूँ विजय जी

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