कविता

चोका {5 / 7 / 5 / 7 / 5 ………………. 7 / 7}

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नित्य सबेरे
सदगुरु नमन
कोरा है स्लेट
शिशु जग पहुंचा
जो चाहो लिखें
ज्ञानदाता स्वरूप
दो होता रूप
गुरु और ईश्वर
प्रथम गुरु
माँ के बाद हैं आते
समय बलवान
पथ प्रहरी (पथदर्शक)
मिटा दे अंधकार
अज्ञानता का
शांति प्रदाता ज्ञानी
संत हो गुरु
विवेकानंद जैसा
सारा जग मानता
ना हुआ कोई
कूटनीत शिक्षक
चाणक्य जैसा
होता है अलौकिक
मन पढ़ता
गुरु-शिष्य का रिश्‍ता
दिशा गढ़ता
प्यारे हुये जिसके
मशि कागज़
वो प्यारा जग हुआ
सख्त अक्खड़
शिक्षक शिष्य रिश्ता
दाग लगाते
है ये शास्त्रोक्ति
किया जिसने
शिक्षक का सम्मान
बना इंसान
मुक्त पापाचरण
गुप्त हस्त दान से

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विभा रानी श्रीवास्तव

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “चोका {5 / 7 / 5 / 7 / 5 ………………. 7 / 7}

  • सविता मिश्रा

    बहुत सुन्दर दी

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      शुक्रिया बच्ची

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया. यह शायद हाइकु, तांका … की तरह ही एक अलग शैली है. इसका भी अपना सौन्दर्य है.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभार आदरणीय

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