ग़ज़ल (याराना)
ग़ज़ल(याराना)
कभी गर्दिशो से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ.
इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ
जिस रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आखो से माय पीने लगे मानो की मयखाना हुआ
इस कदर अन्जान है हम आज अपने हाल से
हमसे बोला आईना ये शख्स बेगाना हुआ
ढल नहीं जाते है लफ्ज़ यूँ ही रचना में कभी
कभी गीत उनसे मिल गया कभी ग़ज़ल का पाना हुआ
ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना
अच्छी ग़ज़ल !
प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ ! आप का स्वागत है !!
बहुत सुन्दर .
अनेकानेक धन्यवाद