उपन्यास अंश

लघु उपन्यास : करवट (छठी क़िस्त)

karvat

रात के दस बजे थे, रामकुमार अपनी परीक्षा की तैयारी में व्यस्त था, तभी जोर की आवाज हुई और बिजली चली गयी। शंकर बोला- ‘लो लगता है कि कोई बड़ी गड़बड़ी हो गयी है।’ छत पर जाकर जब चारों ओर देखा तो में इन्द्रानगर बिजली से दूर अँधेरे में नहाया था। सभी ओर चांदनी का उजाला छिटका हुआ पाकर आसमान के तारे दूर-दूर तक दिखायी नहीं दे रहे थे।

शंकर के पीछे ही रामकुमार भी छत पर पहुँच गया। वह चांदनी को देखकर बहुत खुश हुआ। झट से अपनी किताबों को ले आया और प्राकृतिक परिवेश में पली हुई इस संतान को चांदनी रात में पढ़ने का इतना अभ्यास हो चुका था कि वह उसी रूप में अपने किताबों को पढ़ने लगा। उसको पढ़ता हुआ देखकर शंकर ने भी जब कौतुहलवश पढ़ने की कोशिश की, तो वह पढ़ नहीं पाया और वह चला गया।

रामकुमार ने तो ‘मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.’ में से केवल एम.बी.बी.एस. चुराने की आग भर रखी थी। चांदनी की शीतलता और डाक्टर बनने की आग ने रामकुमार को उसकी परीक्षा में 98 प्रतिशत पाने वाला छात्र बनाकर ही दम लिया। अब रामकुमार की सफलता किसी के रोकने से रुकने वाली नहीं थी।

मानसी द्वारा अपने भाई के पास खबर गाँव भेजी गयी कि रमुवा आज एम.बी.बी.एस. में चुन लिया गया। इस खबर से प्रसन्न होकर ठाकुर राजेन्द्र सिंह ने दस किलो मिठाई मंगवाकर धनुवा और रधिया को यह खबर भेजी और अपने यहां बुलाया। गरीब कहारों का बेटा डाक्टर चुना गया, जानकर दोनों को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उन्होंने अपने कानों के बगल में ताली बजाकर तय किया कि यह खबर उतनी ही सच है जितना कि उसके द्वारा बजायी गयी ताली तो यकीन हुआ।

दोनों दौड़ते हुए पगडण्ड़ी पार कर खेतों में तिरछे रास्ते से ही चीरकर ठाकुर साहब के सामने पहुँचे। अपनी सांसें छोड़ते हुए धनुवा ने कहा- ‘का ठाकुर साहब इ बात सच हव, की झूठ बा?’ ठाकुर साहब ने कहा- ‘हां, इ बात सोरहो आने सच बा। मानसी कै सन्देश आइल बा। हम मिठाई मँगइले हई कि हमार रमुआ सबै क मेहनत के सफल कर दिहले बा। तू हू दूनों जने आपन मुंह मीठा कर ल।’ धनुवा और रधिया ने मिठाई खायी और दोनों के आँखों से बरबस ही आँसू बह निकल रहे थे। दोनों एक साथ बोल पड़े कि ‘ठाकुर साहब आप हम नालायक के बेटवा के लायक बना देहन।’

धनुवा रधिया से वहीं पर कहने लगा- ‘तैं कहत रहली न कि डाक्टरी क सपना जिन देख, मगर हमार बेटवा पूर कैलस कि नाहीं। अब त हम और जोर से ओहकर स्वागत करब और खुशी से इ गाये लगल कि-
रहरी फुलाये, चाहे चटके मटरिया
कलसा लड़े चाहे टूटे हो पोखरिया
चारों ओर चाहे चटके दुपहरिया
रमुवा पढ़ाई करे मोर डाक्टरिया
हे रमुवा के माई! हे रमुवा के माई!!

रमुवा क सूरज बनल ठाकुर बाबू
पूर करि पूतवा ओनहु क सपनवा
सबकै इलाज करिकै अपने हथवा
रमुवा पढ़ाई करे मोर डाक्टरिया
हे रमुवा के माई! हे रमुवा के माई!!

सुर ताल की किसे परवाह थी। वह तो खुशी में झूम उठा था। धनुवा और रधिया के इस गीत में तो उनके नन्हे लाल के सपनों की जो कड़ी ठाकुर साहब ने देखी तो खुशी से उनको एक एक लड्डू और खिलाया।

यहां शहर मेे रात दिन एक करके रामकुमार ने डाक्टरी की पढ़ायी की शुरुआत कर दी थी। रामकुमार ने ट्यूशन के काम को भी जारी रखा और अपनी पढ़ायी भी जारी रखी। अपने ट्यूशन के पैसों से अपनी मां की भी मदद करने लगा। साथ ही गांव के पास की बाजार में एक जमीन भी खरीदी। मेहनती आदमी कभी भी हारता नहीं यही उसने स्वयं करके दिखा दिया।

डाक्टर रामकुमार ने अपनी पांच साल की पढ़ायी पूरी की और उसको गोल्ड मेडल से भी नवाज़ा गया। इसके साथ ही उसको स्कालरशिप भी मिली। इसको पूरा कब किया और कब उसने एम.एस. भी कर डाला इसका उसने किसी को अहसास भी नहीं होने दिया। ठाकुर साहब को जब भी उसकी सफलता का पता चलता तो गांव में एक उत्सव सा माहौल हो जाता।

जारी…

 

One thought on “लघु उपन्यास : करवट (छठी क़िस्त)

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी और प्रेरक कहानी. राम कुमार को अपने परिश्रम और ठाकुर साहब के आशीर्वाद का सु-फल मिलना ही था. आगे देखना है कि वह समाज के लिए क्या करता है.

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