कविता

आतंकवाद का हल

जब दानवों ने किया था अत्याचार ,चारो तरफ था उनका दुराचार ,
तब लिया था प्रभु श्री राम ने अवतार, और किया था उन देत्यों का संहार |
उसी उपलक्ष में दशहरा और फिर दिवाली मनायी जाती हैं ,
चारों तरफ खुशियाँ मनायी जाती हैं , आतिशबाजी जलायी जाती हैं ,
ठीक हैं हमारी यह परम्परा सदियों पुरानी है ,
ऐसा ही चला आ रहा है और हर वर्ष की ये कहानी है ,
परन्तु मन में आता है इस वर्ष तोड़ दे ये क्रम ,
इस वर्ष दीपावली पर आतिशबाजी और पटाखे न जलाएं हम |
क्योंकि कितने वर्षों से हमने पटाखों व धमाको की गूंज सुनी है ,
कभी अक्षरधाम मंदिर में धमाके ,कभी संसद में धमाके ,
कभी ट्रेन में और कभी किसी शहर में, और कश्मीर में तो रोज धमाके ही धमाके,
इतने धमाको से न जाने कितने बिछ गए कफ़न ,
खो गया देश का शांति व अमन ,
और इतने लाशो के ढेर पर चलकर फिर करेगा क्या किसी का मन |
हम इतना सब देखकर भी मोंन है ,
ये भी हमको पता है इसका सूत्रधार कौन है ,
रोज बात होती है सत्ता के गलियारों में ,
रोज बात होती है भाषणों और नारों में ,
पर ऐसा क्यों है हम असहाय हो जातें हैं ,
चाहतें हैं पर फिर क्यों रह जाते हैं ,
ऐसी कौन सी हमारी मज़बूरी है ,
क्यों बात अभी तक अधूरी है ,
क्यों न इस बार हम दीपावली कुछ अलग तरीके से मनाये ,
पटाखें व बमों की लड़ियाँ इस छोर से उस छोर तक वहां बिछा आयें ,
और जो उस लड़ी को चिंगारी दिखलायेगा,
वही आज का राम कहलायगा |
जिस छन हम अपने देश को आतंकवाद से मुक्त करा पाएंगे ,
सही मायने में हम तभी दीपावली और दशहरा मनाने के असली हक़दार बन पायेगें|

अशोक गुप्ता

साहिबाबाद निवासी, आटे-अनाज के व्यापारी, मंचों पर कवितायेँ भी पढ़ते हैं.

One thought on “आतंकवाद का हल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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