कविता

“तुम आकाश हो”

 

“तुम आकाश हो”
मै सीमित धरती

तुम उड़ते हुए उन्मुक्त बादल हो
मै एक लकीर पर बहती नदी

तुम मधुर स्वप्न हो
मै मन की शुभ अंतरदृष्टि

तुम बाहें फैलाए तट हो
मै मंझधार में
डगमगाती सी चिंतित खड़ी

तुम क्षितिज सा अप्राप्य हो
मै तुम्हें छूने के लिए
जिद्द पर हू अड़ी

तुमसे मिलन असंभव हो
मै विरह की जीती हूँ
अमिट जिन्दगी

तुम उदयाचल का सूर्योदय
मै अस्ताचल मे
अंतिम तम बन ठहरी

तुम …निराकार
अनश्वर सम्पूर्ण सत्य हो
मै …साकार
देह बनी अधूरी

तुम महानगर मे सचमुच
गौरव पथ हो
वहां से मेरे इस
अबूझ गाँव तक के पथ की

मैं हूँ …अनंत दूरी

kishor kumar khorendra

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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