कविता

गीतिका

राम सीता हीरक मणि
वीर बालाजी उर धणी

राम का नाम रटते रह
पाप ताप नहीं रहणी

मोह तिमिर सब नष्ट होते
नाम सुमिर भव पार तरणी

राम का संदेश दिया
सीय माता दुःख हरणी

युगल नयन जल से भीगे
दीनि जब मुद्रिका मणि

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

One thought on “गीतिका

  • विजय कुमार सिंघल

    आध्यात्मिक कविता !

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