लघुकथा

सुखद क्षण

अपनी कामवाली के बच्चे को सड़क पर लोटते देख शीला ठहर गई | बगल ही खड़ी माँ से कारण पूछा ! पता चला कि बच्चा दीपावली पर पटाखे लेने को मचल रहा था |
उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश, बताशे लेने के बाद उसे पटाखे भी दिला सकती | जिद्द में आकर बच्चा रोता हुआ लोट रहा था |
शीला ने अपने बेटे के लिए खरीदें पटाखों में से कुछ पटाखे उसे दे दिए | पटाखा हाथ में आते ही वह खुश हो गया | 
“मम्मी ! मेरे पटाखे आपने इसे दे दिया अब इसका डबल करके मुझे दिलवाइए |
शीला उसे समझाते हुए पटाखों की खामियाँ गिनाती रही | लेकिन वह कहाँ मानने वाला था |
अचानक कामवाली का बच्चा आँखों का पानी पोंछते हुए बोल उठा- “तुम भी लोट जाओ यहाँ, फिर तुम्हारी मम्मी तुम्हें, झट से और पटाखे दिला देगी |”
–०–
सविता मिश्रा ‘अक्षजा’
25 October 2014 को लिखी

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “सुखद क्षण

  • मनजीत कौर

    बहुत प्यारी लघु कथा दीदी , दिल को छु गई।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक लघुकथा, बहिन जी.

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