कविता

मुक्तक

नींव विश्वास की मजबूत हो तभी पनपते हैं रिश्ते
क्षल, कपट, द्वेष की तपिश से पिघलते हैं रिश्ते
हसरतों की चाहत में गमों को सिलते ही रहना
सच की आधार शिला पर टिके होते हैं रिश्ते !

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

3 thoughts on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

  • गुंजन अग्रवाल

    hardik aabhar Man Mohan ji

  • Man Mohan Kumar Arya

    सुन्दर एवं उत्कृष्ट रचना। बधाई।

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