भूख ही सत्य है
आकाश उड़ रहा है
चिडिया के संग .
चोच में तिनके की तरह दबा हुआ .है .
आईने से चुराया हुआ एक टुकड़ा प्रतिबिम्ब ..
डर है ..छूट न जाये ..
चिड़ियाँ कही गिर न जाये ..
शीशे की तरह वह टूट न जाये ..
प्रतिबिम्ब में एक घोसला है ..
और घोसले में अंडो के भीतर
साँस ले रहा है ..धरती का सत्य .
सपनों की तरह पल भर में
मीलों दूरी …तय कर रहे है पंख …
टहनियों के पत्ते .हवा से कह रहे है ..
रुक जावो ..
.वृक्ष हाथो को फैलाये ताक रहा है ऊपर …..
शायद गुलेल के निशाने पर है चिडिया … .
अच्छा हो इस बार भी निशाना चूक जाये ..
बच जाये चिडिया …
और प्रतिबिम्ब का एक टुकडा भी …
घोसलें में अभी -अभी जन्मी नन्ही चिडिया भी..
बंद आँखों से.. क्या ….?
देखना चाह रही है अपना .. प्रतिबिम्ब …
लेकीन …खुले चोंच को दानो का इंतजार है …
भूख ही सत्य है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बहुत अच्छी है जी .
shukriya गुरमेल सिंह भमरा ji