कविता

भारत की प्रकृति

अनमोल हमारा देश 
देता हर पल संदेश,
अलग-अलग रंग,
अलग-अलग भेष,
प्रकृति का अनूठा रूप,
निराला उसका सौंदर्य,
देखकर होता आश्चर्य,
कहीं विशालकाय पर्वत,
कहीं समतल मैदान,
कहीं रेत के धोरे,
कहीं उफनता सागर,
कहीं निर्झर झरनो का सुर,
कहीं बहती नदियों का सरगम,
कहीं शीतलहर की धार,
कहीं कड़क धूप की मार,
कहीं रिमझिम की बौछार,
कहीं झमाझम बारिस का वार,
कहीं प्राकृतिक सम्पदा की भरमार,
कहीं प्राकृतिक आपदा से लाचार,
कहीं बर्फीली पहाड़ियों का सौंदर्य,
कहीं पथरीली पहाड़ियों का आश्चर्य,
चारों तरफ है प्यारी हरियाली,
अपने देश की दशा है निराली,
यहाँ कण कण में है प्राकृतिक सुंदरता,
इसलिए तो विदेशी सैलानियों की 
हमारे देश में आने की रहती है आतुरता।

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

2 thoughts on “भारत की प्रकृति

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. जितनी विविधता हमारे प्रिय देश में है उतनी संसार के किसी देश में नहीं है. यही हमारी शक्ति है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भारत की सुन्दरता को बहुत ख़ूबसूरती से पेश किया है .

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