लघुकथा

काम एक भक्ति, आलस्य एक श्राप

गर्मिओं के दिन थे , हर तरफ आग बरस रही थी . वृक्षों पर सभी पक्षी धुप से बचने के लिए जैसे छुप कर बैठे हों . पंजाब में बींडे ही एक ऐसे पक्षी थे जिन के लिए यह मौसम मज़े करने का होता है. बस वोह इन गर्मिओं का ज़िआदा से ज़िआदा मज़ा लेना चाहते थे . वोह गा रहे थे .एक गाता तो दूसरा भी कोई नई धुन गाने लगता . उन को कोई सुध बुध नहीं थी इर्द गिर्द की . और यह वक्त था उन चींटी महारानिओं का जो अपने काम में इतनी मसरूफ थीं कि उन को न धुप की परवाह थी , न भूख की . बस अपने मुंह से अनाज पकडे हुए आगे बड रही थीं और घर में अनाज जमा कर रही थी . वोह सभी भाई बैहने एक ही मकान में रहती थीं . कुछ घर का कूड़ा करकट मुंह में डाले हुए बाहिर की और जा रही थी जैसे घर की सफाई कर रही हों . कुछ आती कुछ जाती और रास्ते में एक दुसरे को मुस्करा कर आगे बडती जाती. धीरे धीरे सारा स्टोर रूम अनाज से भर गिया और घर का कूड़ा करकट बाहिर फैंका गिया . अब सभी खुश थे किओंकि बरसात आने से पहले सारा काम हो गिया था . अब वोह बस मज़े से घूम फिर कर कभी कोई नई खाने की चीज़ ले आती और घर से कोई भी गंदगी हो उठा कर बाहिर फैंक आती . दिन बीतते गए और बरसात शुरू हो गई . एक दिन बहुत जोरों की बारिश हो रही थी और सर्दी भी जोरों की थी .. सभी चींटी चींटे घर के हाल कमरे में हीटर लगाए हुए बैठे थे , खा पी रहे थे और गप्पें लगा रहे थे .

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई , बूड़ी चींटी माँ ने दरवाज़ा खोला और देखा दो बिंडे बारश से भीगे हुए ठुरुं ठुरुं कर रहे हैं . चींटी माँ ने पुछा किया चाहते हो ? एक बिंडा बोला ,माँ ! क्या आप कुछ अनाज उधार दे सकती हो ? हमें बहुत भूख लगी है . चींटी माँ ने पुछा , तमाम गर्मिओं में किया कर रहे थे ? कोई काम धंदा नहीं किया ? बिंडा बोला , माँ ! तुम को तो पता ही है कि गर्मिओं का मौसम हमारे लिए कितना सुहावना होता है , बस हम गाते ही रहे और गाने में इतने खो गए थे कि काम करना भूल ही गए . चींटी माँ गुस्से में बोली, तो अब सर्दिओं में डांस किया करो, हम चींटी लोग ना किसी से उधार लेती हैं, ना किसी को देती हैं, जाओ किसी और का दरवाज़ा खटखटाओ. इतनी कह कर चींटी माँ ने जोर से दरवाज़ा बंद कर लिया.

3 thoughts on “काम एक भक्ति, आलस्य एक श्राप

  • विजय कुमार सिंघल

    अति उत्तम लघु कथा.

  • Man Mohan Kumar Arya

    अधिकतम पुरुषार्थ और आलस्य के नाश से जीवन की सफलता पर बहुत अच्छी कहानी है। इसी भावना को प्रोत्साहित करने के लिए योगः कर्मसु कौशलम (गीता), श्रम एव जयते, उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न च मनोरथ आदि भी सूक्तियाँ है। कर्मणेवाधिकरस्ते माँ फलेषु कदाचन (गीता) एवं यजुर्वेद का मंत्र कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजिविच्छेतम शमः। भी आपकी कहानी के पोषक हैं। कहानी के लिए बधाई।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद , मनमोहन जी .

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