कविता

आंतरिक दृष्टि

 

जैसा मैं बाहर से दिखाई देता हूँ 
वह तो इस संसार के रंगमंच पर 
मेरा है अभिनय 

मेरे वास्तविक स्वरूप से
मेरा-
खुद से नहीं हुआ है
अब तक शायद परिचय

बाहर और भीतर से
एक समान व्यवहार वाले
होते हैं –
इस जग में लोग कतिपय

तुम्हारे द्वारा-
मुझ पर कहानी लिखने से पहले
क्यों न कर ले –
अपने अपने विचारों का
आपस में विनिमय

 

तभी तो तुम
गढ़ पाओगी वह पात्र
जिसमे –
मेरा चरित्र हो पायेगा विलय

पर हो सकता हैं बाद में
कहानी पूरी पढ़ने के पश्चात
मैं वैसा ही बन जाऊं
जिस तरह से तुमने
अपनी कल्पना में
मुझे साकार करने का
किया है दृढ़ निश्चय

मुझे तुम पर पूरा भरोसा है
तुम्हारी कहानी के अनुरूप मैं
पिघल कर ढलता जाउंगा
तुमसे मेरा यही
निवेदन है सविनय

अभी तो केवल मैं तुम्हारा
कहानीकार के रूप में
एक प्रशंसक हूँ
कहानी के खत्म होते होते
कही आरंभ न हो जाए
तुम्हारे प्रति मेरी और से
गहरी मित्रता अतिशय

तुमने चुना है मुझे
अपनी कहानी का नायक
सोच रहा हूँ
क्या मैं हूँ इस लायक
मेरे ख्याल से इस समय
उचित ही हो
तुम्हारी –
आंतरिक दृष्टि
और चेतना की
अंतिम सतह से
लिया गया यह निरणय

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “आंतरिक दृष्टि

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता , खोरेंदर जी आप का निवास राए पुर और मेरा रानी पुर है , मिलता जुलता ही है.

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