गीतिका/ग़ज़ल

इश्क की आग

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ज़ख्मों को आंसुओं के मरहम से भरते चले गए
बुझने न दी इश्क की आग, जलते चले गए

उदास आँखों में मुहब्बत के ख़्वाबों को सजा
तन्हाईयों के पाँव से बेपरवाह कुचलते चले गए

हर एक ख्वाहिश को गर्क का जामा पहना कर
ख़ुशी के हर्फ़ से दिल के पन्ने सजोते चले गए

दर्द ए मुहब्बत के ताबीज को बांध बाजू में वक़्त के
मुट्ठी में कैद कर दर्द, इश्क-ए-कलमा लिखते चले गये

तकदीर के पृष्ठ पर प्यार के अफ़साने छोड़कर
बन अजनबी नस्तर-ए-नज़र से कत्ल करते चले गए

तीरगी का जंगल सजा हर एक राह पर “गुंजन”
याद में बेगैरत मुहब्बत की चिराग जलाते चले गए ।

—गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

2 thoughts on “इश्क की आग

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह किया बात है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया ग़ज़ल !

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