क्रांतिकारी अनुभूति
आओ बुझती चिंगारी को फिर से हम अंगार बनाएं
नए विचारो नयी शक्ति को आओ हम उदगार बनाएं
नयी चेतना नवसपनो को हम सबके जीवन में देकर
राष्ट्रभक्ति को परम धर्म और जीवन का आधार बनाएं
टूटी नौका कब तक चलती, लहरों से टकराती कैसे
लक्ष्य कहाँ तक पा सकते हैं टूटे छूटे सपने ऐसे
उन्हें जोड़ निर्माण करें हम नवयुग नवसंसार बनाएं
आओ बुझती चिंगारी को फिर से हम अंगार बनाएं
बूझे दीयों ने दिया अँधेरा, अभिमन्यु को सबने घेरा
धर्म रह गया बाँट जोहता और अधर्म का सबपर डेरा
प्रत्यंचा फिर अर्जुन बनकर गांडीव की टंकार बनाएं
आओ बुझती चिंगारी को फिर से हम अंगार बनाएं
___सौरभ कुमार
आभार सर
क्रांतिकारी कविता अच्छी लगी.