कविता

मैं क्यों न करूँ इश्क़

क्या मुझे बताओगे
मैं क्यों न करूँ इश्क
जिसकी यादों में
काटे हर दिन
और काटी हैं रातें गिन गिन
हर सुबह हर शाम
कतरा कतरा बहते रहे मेरे अश्क
क्या मुझे बताओगे
मैं क्यों न करूँ इश्क

कहते हैं भूल जाओ मुझे
जैसे बीती रात को
सुबह भूल जाती है
किनारे से लोट के
रेत को लहर भूल जाती है
कैसे समझाऊ उनहे
नही इतना है आसान उन्हें भूल जाना
जिंदगी को मिटा कर
मौत के साये में झूल जाना
वो समझें न समझें
पर जाने क्यों
हमने तो समझा है उनपे हक़
क्या मुझे बताओगे
मैं क्यों न करूँ इश्क

आज मेरे पास
जीने की कोई वजह न थी
उनके सिवा
करने के लिए कोई जिरह न थी
वो आये मेरी जिदगी मे
लंबे पतझड़ के बाद बहार बन के
उनका न होने से ज्यादा
मेरे लिए कोई सज़ा न थी
वो हैं
तो कुछ भी क्र जाएंगे
वो नही
तो हम भी मर जाएंगे
क्या मुझे बताओगे
मैं क्यों न करूँ इश्के
मैं क्यों न करूँ इश्क

(महेश कुमार माटा )

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- mk123mk1234@gmail.com

2 thoughts on “मैं क्यों न करूँ इश्क़

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता! बेहतर भाव !!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुन्दर रचना.

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