कविता

मसखरे

अगर
न बोले तो
गूँगा
कम बोले तो-
मुंहचोर
अधिक बोले तो-
बतोड़
आखिर.
करे भी तो
क्या करे
सिवाय
करते मसखरे
मुंहजोर
दसों दिशाओं में
चल रहे
मसखरे
बेबस…..व्यवस्था
और इनके
नाज-नखरे
आम-आदमी
कौड़ियों से भी
बदत्तर
बिक रहे।

श्याम स्नेही

श्री श्याम "स्नेही" हिंदी के कई सम्मानों से विभुषित हो चुके हैं| हरियाणा हिंदी सेवी सम्मान और फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के अलावे और भी कई सम्मानों के अलावे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति से प्रतिष्ठा अर्जित की है अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर इनकी पैनी नजर से लेख और कई कविताएँ प्रकाशित हो चुकी है | 502/से-10ए, गुरुग्राम, हरियाणा। 9990745436 ईमेल-snehishyam@gmail.com

3 thoughts on “मसखरे

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अत्ति रोचक .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा रचना

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