कवितागीत/नवगीतपद्य साहित्य

आज मनुष्य की प्रकृति के आगे अंतिम हार हुई…!!

बारिश ने कल काल का अविचल रूप बनाया था,
कृषकों के कंदुक स्वप्नों को बीती रात बहाया था,
रीति गागर, रीते सपने लेकर बच्चे सोच रहे,
झोंपड़िया में रोते रोते माँ-बापू को नोच रहे..!
बाबा के नत-नीर बहे,
खाने के लाले पड़ते है,
एक-एक कौर की खातिर,
घर में भूखे बच्चे लड़ते है,
हाय! नियती से भारी ये बारिश की फुफकार हुई,
आज मनुष्य की प्रकृति के आगे अंतिम हार हुई…!!

सूर्यनारायण प्रजापति

जन्म- २ अगस्त, १९९३ पता- तिलक नगर, नावां शहर, जिला- नागौर(राजस्थान) शिक्षा- बी.ए., बीएसटीसी. स्वर्गीय पिता की लेखन कला से प्रेरित होकर स्वयं की भी लेखन में रुचि जागृत हुई. कविताएं, लघुकथाएं व संकलन में रुचि बाल्यकाल से ही है. पुस्तक भी विचारणीय है,परंतु उचित मार्गदर्शन का अभाव है..! रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' नामक अमूल्य कृति से अति प्रभावित है..!

2 thoughts on “आज मनुष्य की प्रकृति के आगे अंतिम हार हुई…!!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ख़ूब !

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      आपका बहुत आभार बड़े भाई… जो आप मेरी कविताओं को प्रोत्साहन प्रदान कर रहे हो.

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