कहानी

पूजा

परदेस में रहते हुए रमेश और संगीता को बहुत वर्ष हो गए थे। संगीता बहुत धार्मिक विचारो वाली स्त्री थी। जो भी भारत से महात्मा आता संगीता उसकी धन और मन से सेवा करती। कोई मंदिर बन रहा हो, कोई गुरदुआरा बन रहा हो, संगीता दिल खोलकर दान करती। भारत भी जब जाते तो वोह साधू संतों की बहुत आवभगत करती। रमेश को इन बातों से कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन उसने पत्नी का दिल कभी तोडा नहीं था। इसी लिए उन का आपस में बहुत प्रेम था। जब भी भारत आते, वोह मंदिर गुरदुआरों का भ्रमण करते। रमेश के लिए तो यह एक महज़ सैर ही होती थी लेकिन संगीता सच्चे मन से भगवान से घर में सुख शान्ति की दुआएं करती रहती थी। इस का कारण शायद यह ही था कि नए ज़माने में पले उनके बच्चे अपनी मनमर्ज़ी ही करते थे. कोई गोरे लोगों के साथ उठता बैठता था कोई और देश के लोगों से सम्बन्ध रखता था और इस बात से संगीता मन से बहुत दुखी थी। रमेश उस को बहुत समझाता कि नए ज़माने को समझ लो, वोह हमारी सुनेगे तो नहीं, इस लिए अपनी पैंशन  को एन्जॉय करो, लेकिन संगीता का दिल कहता था कि एक दिन उनके बच्चे जरूर समझेंगे।

                 इस दफा जब वोह भारत आये तो उनका प्लैन वो मंदिर और गुरदुआरे देखने का था जो पहले कभी नहीं देखे थे। जब भी वोह इंडिया आते थे , वोह उस ट्रेन में सफर करते थे जो हर छोटे छोटे स्टेशन पर खड़ी हो। उन्होंने दिल्ली से ट्रेन पकड़ी और मज़े से सफर शुरू कर दिया। हर स्टेशन पे कुलिओं को देखते लोगों को देखते और सफर का मज़ा ले रहे थे। रास्ते में एक छोटा सा स्टेशन आया जिस से चार हिज़ड़े चढ़ गए। दुनिआ में सब से ज़्यादा नफरत संगीता इन हिजड़ों से करती थी। हिज़ड़े तरह तरह के हाव भाव करने लगे और तालिआं बजा बजाकर लोगों को कुछ देने के लिए मजबूर करने लगे। उन की उंगलिओं में बीस बीस पचास पचास के नोट थे। बहुत लोग कुछ ना कुछ देने लगे। संगीता ने नफरत से अपना मुंह खिड़की की ओर कर लिया और अपने मुंह पर रुमाल रख लिया। रमेश भी दूसरी तरफ देखने लगा। हिजड़े शायद जान गए थे, इस लिए उन्होंने उन दोनों की ओर देखा भी नहीं और आगे चले गए। बहुत देर तक उन हिजड़ों की आवाज़ें आती रही और संगीता ने सुख की सांस ली।
             कुछ देर बाद वोह हिजड़े अपना चकर लगाकर फिर वापिस आ गए  और संगीता और रमेश के पास ही कुछ खाली सीटों पर बैठ गए। एक ने सिगरेट जला ली तो संगीता ने गुस्से से उनकी तरफ देखा। उसने सिगरेट बुझा दी और तीन हिजड़े उठ कर खड़े हो गए लेकिन चौथा वहीँ बैठा रहा। एक छोटा सा स्टेशन आया और तीनों हिजड़े उत्तर गए। सफर लम्बा था, इसलिए रमेश और संगीता ने सोच लिया था कि अंबाला कैंट जा कर चाए पीएंगे क्योंकि वहां गाड़ी ने बीस मिनट रुकना था। जब अंबाला कैंट नज़दीक आने लगा तो वोह हिजड़ा उठ कर दरवाज़े के नज़दीक खड़ा हो गिया। स्टेशन आ गिया और रमेश संगीता भी उत्तर कर प्लेटफार्म पर आ गए और टी स्टाल वाले को दो चाए देने को कहा और दो समोसों का भी आर्डर दे दिया। वोह हिजड़ा भी नज़दीक खड़ा था और दूर दूर तक नज़र घुमा रहा था जैसे किसी का इंतज़ार हो। संगीता उस की ओर देख कर मुस्करा दी। कुछ मिनट ही हुए थे कि एक खूबसूरत लड़की हाथों में बड़ी बड़ी किताबें लिए भागी आ रही थी। आते ही उस हिजड़े के चरण स्पर्श किये और बोली माँ ! “मेरी गाड़ी लेट हो गई”. वोह हिजड़ा मुस्करा कर बोला,” बेटा कोई लेट नहीं हुई, और सुना तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है ?” और वोह हिजड़ा जेब से कुछ नोट निकालने लगा। लड़की बोली, “माँ ! अभी तो मेरे पिछले पैसे भी खत्म नहीं हुए, और आप और दे रही हैं “. हिजड़ा हंस कर बोला , बेटा जी, जब तुम डाक्टर बन जाओगी तो सारे पैसे लौटा देना।”. वोह लड़की उस के सीने से लग गई। सभी हैरान हुए यह नज़ारा देख रहे थे और संगीता का तो मानो दिमाग चक्र खा रहा था।
              गाड़ी ने सीटी दी और सभी वापिस गाड़ी में चढ़ गए। संगीता और रमेश भी अपनी अपनी सीटों पर बैठ गए और वोह हिजड़ा भी वापिस आ गिया। लड़की शायद उसको मिलने के लिए ही आई थी। रमेश उस हिजड़े को बोला, “आप बुरा मत मनाइएगा, आपको बहन जी कहूँ या भाई साहिब कहूँ “. हिजड़ा हंस पड़ा और बोला, कुछ फरक नहीं पड़ता, जो तुम पूछना चाहते  हो मैं समझ ही गिया हूँ “. आप इस लड़की के बारे में पूछना चाहते हो, इस का नाम पूजा है। उस ने संगीता से  पूछकर एक सिगरेट सुलगाई और बोला, ” भाई साहिब और बहन जी , हम लोगों ने पता नहीं पिछले जनम में किया कुकर्म किया था, जो हमें यह जून मिली, इस से तो भगवान हमें जानवर बना देता तो अच्छा होता ” उस की आँखों में नमी दिखाई दी और संगीता ध्यान से उस की ओर देखने लगी। फिर उस ने एक गहरा कश लिया और बोला, ” जब से होश संभाली है बस मांगते ही रहे, किसी से नफरत, किसी से हंसी मज़ाक सहते सहते इतनी उम्र हो गई, एक दिन मैं इतना दुखी हुआ कि खुदकशी करने के लिए साथिओं को छोड़ कर रेलवे लाइन  की ओर चल पड़ा। रेलवे लाइन पर एक बड़ा सा बैग दिखाई दिया लेकिन मैंने कोई ध्यान नहीं दिया और लाइन पर लेट गया।
          कुछ मिनट ही हुए थे कि उस बैग में  से एक बच्चे के रोने की आवाज़ आई। मैं ने सब कुछ भूल कर उस बैग को उठा लिया और खोल कर देखा तो हैरानी की कोई हद नहीं रही जब उस में बच्चा दिखाई दिया। मैं बच्चे को उठा कर आ गया और बहुत कोशिश की कि कोई इस का वारस मिल जाए लेकिन बच्चा और वोह भी लड़की कोई बोला नहीं, मैं घर ले आया और साथिओं को सारी बात बताई , हम ने बहुत कोशिश कि इस बच्चे की माँ मिल जाए लेकिन कोई कामयाबी नहीं हुई। तीन दोस्त मांगने जाते और एक को बच्चे की देख भाल करनी पड़ती , धीरे धीरे हम सब का इतना मोह पड़  गिया कि इस के बगैर हम रह न सकते। दिन गुज़रते गए। हम ने इस का नाम पूजा रखा था क्योंकि यह ही हमारे लिए लक्ष्मी बन कर आई थी। अब उस की पढ़ाई में मुश्कलें आने लगीं। जब वोह स्कूल वाले माँ बाप का नाम पूछते तो हमारे पास कोई जवाब न होता , फिर एक भला हैड टीचर हमारे लिए मसीहा बन कर आया। पूजा को हम अपने पास तो रख नहीं सकते थे क्योंकि इससे पूजा को दुःख पहुंचता। यह एक बहुत लम्बी कहानी है, बस इतना ही कहूँगा कि पूजा भी बहुत समझदार है और अब एम बी बी एस का आख़री साल है, पूजा पड़ने में बहुत काबिल है , इस साल के बाद वोह डाक्टर बन जायेगी और हमारी पूजा को चार चाँद लग जाएंगे “.
        संगीता अपनी ऐनकों के नीचे से बहते आंसू रुमाल से साफ़ कर रही थी, और रमेश भी बहुत संजीदा था। संगीता ने अपने पर्स से पांच हज़ार रूपए निकाले और उस हिजड़े के हाथों में जबरदस्ती थमा दिए और  रोते  हुए बोली “भैया यह मेरी तरफ से पूजा को प्यार दे देना , विनती  करती हूँ , इंकार मत करना , नहीं तो मुझे घोर दुःख पहुंचेगा। हिजड़ा उठ कर उन दोनों के चरण स्पर्श करने के लिए  झुका लेकिन संगीता ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोली, भाई साहब चरण स्पर्श तो हमें आपके करने चाहिए क्योंकि आज हमें एक देवता के दर्शन हुए हैं।

6 thoughts on “पूजा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी लिखी है आपने. अगर यह घटना एक के बारे में भी सत्य हो तो वह स्तुति के योग्य है.
    वैसे हिजड़े बेचारे प्रकृति के खर को भोगते हैं. वे न कोई काम कर सकते हैं और न लोग उनको करने दे सकते हैं. आवश्यकता इस बात की है कि उनको भी सामान्य नागरिक मानकर पूरे अधिकार दिए जाएँ और समाज में उनको सामान्य नागरिक की तरह स्वीकार किया जाये. तभी घर घर जाकर मांगने का यह पेशा समाप्त होगा.

    • विजय भाई , आप ने मेरी बात समझ ली , यही बात मैं कहनी चाह रहा था कि किया वोह इंसान नहीं हैं ? उन लोगों को कौन मजबूर करता है यह सब करने को ? यह हमारी परम्पराएं जो पता नहिं कब से चलि आ रहि है . अगर उन कि सैकसुऐलिति भुल कर लोग उन को कुछ करने दे तो देश कि उनति मे हिससा daal सकते है. हम ने यह धारना हि बनाइ हुइ है कि हिजदे किसि काम के नहिन जो अब बदलने कि जरुरत है

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते श्री गुरमेल जी। कहानी बहुत अच्छी है। जो स्थिति संगीता की अंत में हुई वही स्थिति कहानी को पढ़ने के बाद मेरी हुई। लेकिन सब हिंजड़े मैसे नहीं होते। अधिकांस की प्रकृति बहुत ख़राब भी होती है। आज कल यदि किसी के घर में विवाह हो या संतान हो तो सबसे अधिक परेसानी इन्ही लोगो की मांगों को पूरा करने में होती है। आज कल यह लोग महलों जैसे निवास स्थानो में रहते हैं। शायद ०.१ प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे जैसा कि कहानी में वर्णित है। बहुत बहुत धन्यवाद।

    • मनमोहन जी , आप की बात सही है किओंकि आप भारत में रहते हैं और मुझ से ज़िआदा जानते हैं . लेकिन कभी कभी लाखों करोड़ों में कोई इंसान कुछ देखता है तो उस की जिंदगी ही बदल जाती है . आप ने शाएद पिंगलवाड़ा अमृतसर का नाम सुना होगा , यह भगत पूरण सिंह ने शुरू किया था . वोह हर रोज़ गुरदुआरे जाता था , एक दिन जब वोह सुबह माथा टेकने गिया तो गियानी जी एक बच्चे को लेकर आये जो कुछ दिनों का ही था और डिसेबल भी था . गियानी जी पूरण सिंह को कहने लगे , भगता! तू हमेशा पूछता रहता है , कि मेरे लाएक कोई सेवा बताओ , तो यह लो बच्चा और इस की देख भाल करो . पूरण सिंह उस वक्त सोलां सत्रां वर्ष का था . कहानी को मुख़्तसर रखूं , पूरण सिंह ने शादी नहीं कराई और उस पिंगले को अपने कधों पर तब तक ले जाता रहा जब तक वोह पिंगला ६७ वर्ष का नहीं हो गिया , वोह पिंगला ना बोल सकता था ना अपने आप खा सकता था . पूरण सिंह ने और भी गरीब लूले लंगड़ों की सेवा करनी शुरू कर दी . उस ने एक रिक्शा ले लिया और उस में बेसहारा लोगों को बिठा बिठा कर उस का इलाज करने लगा . वोह रोज़ घरों से रोटीआं मांगने जाता था , बहुत लोग उस को दुत्कार देते थे . लेकिन उस ने हौसला नहीं छोड़ा और हैरानी कि बात यह है उस की शिक्षा सिर्फ मिडल तक थी लेकिन उस ने कई किताबे लिखीं और इंग्लिश में भी परय्वर्ण के बारे में लिखी . आज उस का वोह रिक्शा और बहुत सी और चीज़ें संभाल कर अमृतसर रखी हुई हैं . मेरे मामा जी ने जो एस डी ओ थे इस पिन्ग्ल्वाड़े में बहुत काम किया . आज यह इन्स्तीचुशन बहुत बड़ी है , लाखों सिख बाहिर के देशों से पैसे भेजते हैं . मेरी पत्नी भी बहुत पैसे इकठे करती है और जब कोई इंडिया आता है तो उस को दे दिए जाते हैं . २००१ में मैं और मेरे छोटे भैया वहां गए थे और विडिओ भी ली थी . हम तो देख कर ही दंग रह गए कितनी सेवा बेसहारों की करते हैं वोह लोग . बस ऐसे ही ०.१ प्रितिशत लोग कुछ कर के दिखा देते हैं .

      • Man Mohan Kumar Arya

        धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी। आपका कहना सत्य है। पूर्ण सिंह जी अवश्य कोई पुण्य आत्मा थे। वह मानवता की मिसाल हैं। उनको मैं नमन करता हूँ. ऐसे ही लोगो में शहीद भगत सिंह , शहीद राम प्रसाद बिस्मिल, शहीद लाल लाजपत राय, शहीद चंद्रशेखर आजाद, शहीद सुखदेव, शहीद राजगुरु, शहीद श्रद्धानन्द और शहीद लेखराम जी थे जिन्होंने अपने व अपने परिवार की परवाह न कर अपने देश वा जाति की परवाह की।

        • मनमोहन भाई , सही बात लिखी है , आप ने .

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