हास्य व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य : खून का रिश्ता

गब्बू भैया सो के उठे ही थे कि झबरू ने उनको पकड़ लिया.
“अरे कईसे हैं गब्बू भैया?”
“हम तो एकदम ठीक हैं झबरू, तुम कहो.”
“सब उसकी किरपा है खैर आप एगो बात बताइए.”
“पूछो भाई.”
“जो आपके खून के रिश्ते का हो उसके खून के रिश्ते का कोई भी तो आपके खून के रिश्ते का ही हुआ न?”
“हाँ जी, एकदम” गब्बू भैया फटाक से बोले.
“तो फिर उसके दो खून के रिश्तेवाले भी तो आपस में खून के रिश्तेवाले ही हुए न?”
“हाँ भाई बिल्कुल हुए”
“तो अगर उनका आपस में बियाह करा दिया जाए………..?”
झबरू की बात पूरी होने से पहले ही गब्बू भैया टोक पड़े “अरे ई का अनाप-सनाप बके जा रहे हो? दु गो खून के रिश्ते में लगनेवालों का भी कहीं बियाह होता है? ई त महापाप हुआ, कोन करेगा अइसन?”
“कोन करेगा अइसन? अरे बाप रे बाप, बड़का सीधा बन रहे हैं आ खुद ही दो साल पहिले ई कांड कर आए हैं” झबरू ताव से बोला.
“मार खाएगा का रे? नसा खा के आया है? जे मुँह में आ रहा बक रहा” गब्बू भैया को भी गुस्सा चढ़ गया कि आखिर उन्होनें ऐसा क्या कब किया
“त बताइए आप ही ई सुगनवा आपके खून के रिश्ता में है कि नहीं?”
“हाँ एकदम है तो?”
“हाँ तो दुलरिया ई सुगनवा के खून के रिश्ता में है कि नहीं?”
“हाँ उ भी है”
“अच्छा तो चंदरवा भी तो सुगनवा के ही खून के रिश्ते में है?”
“हाँ रे उ भी है, त का हो गया?”
“त आप दो साल पहिले चंदरवा आ दुलरिया के बियाह कैसे करा दिये?”
इतना सुनते ही गब्बू भैया परेशान हो उठे। हाय राम ई का कर दिया हमने। पाप हो गया भारी। छाती पीटते हुए अपनी बीवी सुंदरिया को आवाज दी “अरे इधर आओ रे, हमार मति मारी गयी थी, त तुमको भी हमको रोकना नहीं था। देखो का हो गया, दादा रे दादा!”
सुंदरिया दाँत पीसते हुए अाँगन से निकली “एतना पीते काहे हैं कि सुत के उठे पर भी उतरता नहीं है? ई सुगनवा आपका पोता है आठ महीना का आउर दुलरिया उसकी महतारी है आ चंदरवा उसका बाप आउर आपका बेटा। त दो साल पहिले अपने बेटा चंदर का शादी आप दुलारी से करवाये थे त कोन पाप कर आए? जानते नहीं हैं झबरूआ आपको मूर्ख बनाता रहता है बात बिन बात.”
“रुक-रुक रे झबरूआ, आज तोहर खैर नहीं” गब्बू भैया लाठी लेकर पिनकते उठे, लेकिन झबरू पेट पकड़ के हँसता हुआ दरवाजे से बाहर भाग चुका था.

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “हास्य-व्यंग्य : खून का रिश्ता

  • विजय कुमार सिंघल

    हा…हा…हा…. अच्छा हास्य !

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